शब्द भर जीवन
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ये शब्द…
चलते हैं मेरे जीवन के साथ – साथ
जीवन भर निरंतर
इक आशा लिए !
रीतने की प्रक्रिया में
स्थानापन्न बनते हुए
ये शब्द…
खो जाते
किसी अदृश्य जगत में
अपने ” जोम ” में
नैमित्तिक
वास स्थान की ओर
अपनी दुनिया में
तरह – तरह के शब्द
अपने सतरंगी अस्तित्व में
मंत्रों, प्रार्थनाओं, दुआओं के साथ
सामंजस्य की मुद्रा में
कोई वैर – भाव नहीं
तटस्थता और दुराव नहीं
कटुता नहीं
विलगाव नहीं
सामीप्यता का आलम
यह सद्भाव, यह समरसता
गज़ब की रवादारी है –
शब्द – सम्राट बड़ा खुश है
कौतूहल है उसके अंदर
आख़िर कैसे हुआ ये सब ?
ये सब एक कैसे ?
दर्प, अभिमान, कहां खो गया ?
कहां गई इनकी अफज़लियत ?
मंत्री गण भी समझ नहीं पा रहे
क्या है माजरा ?
अजीब दुविधा, अजब ख़ामोशी !
….
यह उपलब्धि…
जय – जयकार … शब्द सम्राट
अब पूर्ण हो गई
आपकी दुनिया !!
ये शब्द …
” सिर्फ़ सद्भाव की चादर ओढ़े हैं
अमन व आशती की बात करते हैं “
ये कहते हुए –
झोंका आया ठंडी हवा का
सम्राट की तरफ़
निनाद में –
जय हो, जय हो, जय हो
ये सभी भारत देश से आए हैं !!!
सतत प्रवाह है इनका
रीतते/ स्थानापन्न बनते
शांति का पैगाम देते
स्थाई वास है इनका
जय हो , जय हो , जय हो।
( गांधी जी और शास्त्री जी को एक काव्यांजलि )
– स्वरचित
( दो अक्तूबर 2022 ई. )

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