अतिथि लेखक/पत्रकार

“अँधेरे के ख़िलाफ़ ” एक सार्थक पहल

“अँधेरे के ख़िलाफ़ ” काव्य संग्रह द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक’ समदर्शी प्रकाशन गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित पृष्ट संख्या: 128 मूल्य : Rs. 200.00 “ ख़ाबे हस्ती मिटे तो हमारी हस्ती हो , वरना हस्ती तो ख़ाब ही की है” जब जीवन की विसंगतियाँ और त्रासद स्थितियाँ सामने आती हैं Read more…

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“अँधेरे के ख़िलाफ़”-जैसे मैंने समझा

वरिष्ठ लेखक आदरणीय राम पाल श्रीवास्तव जी का काव्य संग्रह “अँधेरे के ख़िलाफ़” कुछ दिनों पहले प्राप्त हुई थी. समय अभाव के कारण पढ़ न सका. इधर कुछ समय मिला तो पूरी किताब पढ़ डाली. किसी पुस्तक की समीक्षा लिखना मेरे लिए अत्यंत दुरूह कार्य है. किसी भी लेखक की Read more…

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अंधेरे में से रोशनी की किरण तलाशती कविताएं 

कवि दिलीप कुमार पाण्डेय ‘उम्मीद की लौ’ के बाद, दूसरे काव्य संग्रह *’अंधेरे में से’* की  81 कविताओं के माध्यम से पाठकों के समक्ष रूबरू हुए हैं।  कवि की इन कविताओं से गुज़रते हुए विदित होता है कि कवि ने द्रुतमति से जीवन-परिवर्तन तथा आधुनिकता की दौड़ में झेले, भोगे, Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

हम मरि जाब, हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय !

एक दिन अवधी महारानी ने शोकाकुल होकर मुझसे कहा, ” तू लोग काहे हमार दुरगत करत जात हव ? हमरे लिये कोऊ कुछू नाही करत हय … ऐसन मा हमरे मरैम केत्ती देर हय।” मैंने कहा कि आपने अच्छा किया। हमें ध्यान दिलाया। आप ठीक कहती हैं। हम लोगों ने Read more…

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लीक से हटकर ” लालटेनगंज “

” लालटेनगंज ” पढ़ डाली | लीक से थोड़ा हटकर है यह | इसमें अख़लाक़ अहमद ज़ई की 15 कहानियां हैं, जिन्हें वे प्रतिनिधि मानते हैं अर्थात अपनी विभिन्न शैली – शिल्प का अगुआ ! शीर्षक अच्छा है , वरना प्रतिनिधि कहानियों की भीड़ में खोने का ख़तरा और अंदेशा Read more…

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उपनामों की परंपरा हिंदी कवियों में

– अरुण अपेक्षित , इंदौर [ मध्य प्रदेश ]  उपनाम किसी कवि अथवा रचनाकार के नाम का वह हिस्सा है जो सामान्यतः किसी कवि या रचनाकार के द्वारा अपनेआप को कवि प्रदर्शित करने के लिये स्वंय रख लिया जाता है। यह उपनाम कवि या रचनाकार के परिचय में एक प्रतीक Read more…

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गंगा की अविरलता का सवाल अब भी बाक़ी है ?

गंगा एवं गाय को ईश्वर का वरदान मानकर दोनों की पूजा की जाती है और दोनों आज भी करोडों लोगों की आस्था की प्रतीक बनी हुयी है। इन दोनों की उत्पत्ति बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय के लिये हुयी है और दोनों अस्तित्व में आने के बाद से ही निरंतर Read more…

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ज़ेरे बहस क्यों है लड़कियों की शादी का मुद्दा ?

हमारा देश एक समय में विश्व गुरु माना जाता था और हमारी संस्कृति, हमारा पहनावा, हमारे रीति रिवाज दुनिया से भिन्न हमारे देश की पहचान थे, जिसके सभी  कायल थे। हमारी भारतीय संस्कृति में अपनी नारी को शक्ति एवं बालिकाओं को देवीस्वरूपा तथा धर्म पत्नी गृहलक्ष्मी माना जाता था। अपनी Read more…

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झूठ – फरेब का सरगना है पाकिस्तान 

  जो लोग कहते हैं कि पुलवामा हमले के बाद हमारी सेना द्वारा की गई जबाबी कारवाई से पाकिस्तान घबड़ा गया है।पाकिस्तान वही पहले वाला ही है उसकी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया है बल्कि वह दुनिया भर में झूठ- फरेबों का बादशाह बन गया है।पाकिस्तान की हूकूमत कितने हाथों Read more…

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सार्थक पहल और सन्देश

पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान की बहानेबाजी एवं आतंकवाद को लगातार प्रोत्साहन एवं पल्लवन देने की स्थितियों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया था कि उसे न केवल सबक सिखाया जाए, बल्कि यह संदेश भी दिया जाए कि भारत अब उसकी चालबाजी में आने वाला नहीं है। इसके लिये Read more…

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यह समृद्धि का कैसा विकास है?

व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के विकास को नापने का एक ही पैमाना है और वह है समृद्धि। व्यक्ति का विकास मतलब व्यक्ति की समृद्धि और देश का विकास मतलब देश की समृद्धि। समृद्धि का भी अर्थ निश्चित और सीमित कर दिया गया है। पैसों और संसाधनों का अधिकाधिक प्रवाह ही Read more…

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पाकिस्तान को करारा सबक़ सिखाना ज़रुरी  

जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर  हुए  आतंकी कायराना हमले में  हमारे देश के कई रणबांकुरे सैनिकों की जान चली गई थी।  यह हमला हमारे पड़ोसी देश के आतंकी संगठन जैसे मोहम्मद द्वारा जम्मू कश्मीर की सरजमी से कराया गया है। जम्मू कश्मीर में पनप रहा आतंकवाद Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

बालिकाओं की घटती संख्या की त्रासदी

देश में हुई 2016 की जनगणना में लड़कों की तुलना में लड़कियों की घटती संख्या के आंकडे़ चैंकाते ही नहीं बल्कि दुखी भी करते हैं। जिस तरह से लड़के-लड़कियों का अनुपात असंतुलित हो रहा है, उससे ऐसी चिन्ता भी जतायी जाने लगी है कि यही स्थिति बनी रही तो लड़कियां Read more…

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खोखले चुनावी वादे कब तक ?

आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए चुनावी वादों की ऐसी भरपूर बारिश होने लगी है कि लगने लगा है लोकतंत्र नेताओं के लिए ही नहीं, जनता के लिए सचमुच महाकुंभ की तरह है। लेकिन विडम्बना यह है कि ये वादें एवं नारे खोखले होते हैं। किसी समस्या की गहराई में Read more…

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‘ई वी एम नहीं बैलेट पेपर’ – तरक़्क़ी नहीं तनज़्ज़ुली

एक अमेरिकन साइबर एक्सपर्ट ने, जो भारतीय मूल का है, ई वी एम मशीनों को टैम्पर करने का कथित ख़ुलासा करके देश की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को निशाने पर ले लिया है | इस एक्सपर्ट द्वारा ई वी एम मशीनों के साथ छेड़छाड़ के दावों के बीच देश में Read more…