शब्द क्या है ?
अंदर का बंधन
अनहद नाद
दिलों तक पहुंचने का तार
रूह को तर – बतर का औज़ार
झंकृत करता शब्दकार
हक़ीक़त की परछाई बनाकर
एक बहाना बनाकर
कोई कितना भी ऊपर चढ़ जाए
शब्द नहीं तो
काठी नहीं
जिस पर टिके
जो
बिन शब्दों के विचारों को ढो सके !
…..
संभव नहीं
बिना रूमी के ” अस्तरलाब ” के
जो ईश्वर के पास है
संचालक तंत्र
शब्द यंत्र
जो चलता रहता है
रात – दिन के चक्र में
शब्द बनकर
हिरा की घाटी में
कुरुक्षेत्र के मैदान में
राह दिखाता है
शांति बख्शता है
दिलों को परचाता
मिठास घोलता है…
कटु रूप भी धारता है
” तथास्तु “/ ” एवमस्तु ” का उद्घोष कर
” कुन ” कहकर
जो चाहता है
हो जाता है
तांडव भी इसी से होता है
हां, शब्दों से संहार !
जब यही शब्द
शब्द – वाण
मिसाइल की तरह काम करते हैं
” बम – बम ” से उच्चारित होकर
रूप धरता है
अणु से होकर
हाइड्रोजन से आगे का सफ़र करता है !
……
शब्द मुश्किलकुशा है
जय – जय से
अज़कार बनकर
ॐ से अकबर बनकर
नमः से सलात बनकर
सुबहान से राम बनकर
परमेश्वर के कलमा
ईसा का चमत्कार बनकर
यह शब्द ही तो है
जो ओंकार से
वाहे गुरु
गॉड/ रूहुलकुदुस/ रब से
” अस्माउलहुस्ना ” के
99 तक पहुंच जाता है
सहस्रनामों से आगे बढ़
33 कोटि तक जाता है
फिर भी
परमात्मा के गौरव का बखान पूर्ण नहीं !
इतना लंबा सफ़र …
फिर भी आगे बढ़ता जाता है
सततगामी है
अमर है
शाश्वत है
जीवन का उपवन है
ज्योति है
ज़िंदगी का परवाज़ है
जिस पर किसी का अधिकार नहीं !
कोई हस्तक्षेप स्वीकार नहीं !!
– राम पाल श्रीवास्तव ‘ अनथक ‘
11 अक्तूबर 2022 ई.

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