खासमखास

जीवन के विविध पक्षों पर बतियाती कविताएं

” शब्द-शब्द ” (काव्य संग्रह) प्रकाशक- समदर्शी प्रकाशन रचनाकार–रामपाल श्रीवास्तव ‘अनथक ‘ रामपाल श्रीवास्तव लंबे अर्से से पत्रकारिता के क्षेत्र में जुड़े रहे हैं।उनका व्यापक अध्ययन चाहे इतिहास से संबंधित हो या राजनीति से, भारतीय संस्कृति -परंपरा से हो,या फिर किसी भाषा से संबद्ध, उनके अनुभवों का यह विशाल दस्तावेज, Read more…

खासमखास

” जित देखूँ तित लाल ” – एक गंभीर वैचारिक स्वर

पुस्तक :जित देखूं तित लाल द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव प्रकाशन: शुभदा बुक्स शीर्षक समीक्षा का शाब्दिक अर्थ है सम्यक् परीक्षा, अन्वेषण । पुस्तक समीक्षा में किसी पुस्तक की सम्यक् परीक्षा और विश्लेषण किया जाता है। इस परीक्षा और विश्लेषण से पाठक को पुस्तक विशेष के विभिन्न पहलुओं की जानकारी Read more…

खासमखास

” जित देखूँ तित लाल ” – 21 पुस्तकों की तथ्यपरक समीक्षा 

आज जब पुस्तकों की समीक्षाएं प्रायोजित होने लगी हैं। पत्र-पत्रिकाएँ पैसे लेकर पुस्तकों पर समीक्षाएं करने/कराने लगी हैं, ऐसे में जित देखूँ तित लाल का प्रकाशन सुखद ही कहा जा सकता है। इस पुस्तक में इक्कीस पुस्तकों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं लेखक ने। रामपाल श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार हैं, Read more…

खासमखास

” शब्द – शब्द ” – एक गंभीर वैचारिक काव्य – आंदोलन 

पुस्तक: शब्द-शब्द द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव ” अनथक “ प्रकाशन: समदर्शी प्रकाशन “मेरी कविता आयास रचित नहीं अनुभूत होती है दुःख सुख ,वेदना ,और संवेदना की प्रसूत होती है” उक्त पंक्तियों से अपनी पुस्तक “शब्द-शब्द” का आरम्भ करने वाले, राम पाल श्रीवास्तव जी, साहित्य की विविध विधाओं में अपने Read more…

धर्म

इंसानियत के फूल 

इंसानियत वह फूल है, जिसकी ख़ुशबू पूरी दुनिया में फैलती है। यह एक नायाब तोहफ़ा है, बहुत ख़ूबसूरत बेमिसाल अज़ीम जज़्बा है। इंसानियत की कोई नस्ल, ज़ुबान और जाति नहीं होती। इसका रिश्ता इंसान की निजी ज़िन्दगी और किरदार की तामीर से है। अफ़सोस, आज इंसानियत दम तोड़ती नज़र आ Read more…

देश-देशांतर

ओ, ताना रिक्शा ! तू गया, सामंतवाद क्यों नहीं ले गया… अलविदा

लगभग 35 वर्ष पहले जब मैं कोलकाता गया था बीबीसी के एक चुनावी कवरेज ( सर्वे ) का हिस्सा बनने, तब तक यह महाशहर अपने असली वजूद में था। उस वक्त कहा जाता था कि जिसने हाथ रिक्शा नहीं देखा और उस पर सवारी नहीं की, उसने कोलकाता का असली Read more…

देश-देशांतर

गीत जो मर्सिया बन जाता है !

चीन में जब से गिद्ध आए कबूतर नहीं उड़े ! मगर क्यों ? सबकी आंखें बंद हैं सबकी हरकतें बंद हैं उन्हें नहीं सुनाई पड़ती सिसकती आवाज़ें नहीं महसूस होती क्रूर पीड़ा निचुड़ती उम्मीदें बिछड़ती सांसें ! कोई जीवंतता नहीं मगर चंगेज़ ज़िंदा है भेड़ियों के भेष में दाल – Read more…

साहित्य

वंदे मातरम् अंगूठी और छल्ले !

…………………………………. देश को अंग्रेज़ों से मुक्त कराने के लिए जब जनमानस उद्यत हो उठा था, ” वन्दे मातरम् ” की गूंज हर तरफ़ सुनाई देती थी, तभी ऑस्ट्रिया की एक कंपनी ने ” वंदे मातरम् ” अंगूठी और छल्ले की भारत में बिक्री हेतु सप्लाई शुरू कर दी थी। इसको Read more…

सामाजिक सरोकार

” हम एक हैं ” और रहेंगे

आज देश के पहले दलित आई ए एस डॉक्टर माता प्रसाद का जन्मदिन है … शत शत नमन।11 अक्तूबर 1925 को उनका जन्म जौनपुर, उत्तर प्रदेश में जगत रूप राम के यहां हुआ। कुछ संदर्भों में उनका 1924 में पैदा होना बताया गया है, जो गलत है।  दलित साहित्य के Read more…

सामाजिक सरोकार

मेरे शब्द जब सुनना …

मेरे शब्द जब सुनना … …………………….. एक निवेदन… एक आग्रह… मेरे शब्द जब सुनना तो ज़रूर आना कविता बनके आएं या नज्म गीत बनके आएं या ग़ज़ल कहानी बनके आएं या उपन्यास ख़बर बनके आएं या फीचर पत्र बनके आएं या अग्रलेख मधुरस घोलें या गरल बिखेरें उस हाल में Read more…

धर्म

मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता…!

  . मैं सोचता हूं – मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता जो वृक्ष के सदृश है जिसके भूखे अधर लपलपा रहे धरा – स्वेदन – पान को आतुर वह वृक्ष जो दिन और रात देखता है ईश्वर को ! गिराता है अपने शस्त्र – रूप पत्ते इबादत के Read more…

धर्म

मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता…!

……………….. मैं सोचता हूं – मैं कभी नहीं लिख पाऊंगा वह कविता जो वृक्ष के सदृश है जिसके भूखे अधर लपलपा रहे धरा – स्वेदन – पान को आतुर वह वृक्ष जो दिन और रात देखता है ईश्वर को ! गिराता है अपने शस्त्र – रूप पत्ते इबादत के निमित्त Read more…

खासमखास

मेरा अस्तित्व

मेरा अस्तित्व……..……… आज साठ पूरा करने के क़रीब पहुंचकर देखा अपने अस्तित्व को अपने आपको अपने में खोकर। अख़बार के मानिंद तुड़े – मुड़े अपने अस्तित्व को जिसके पीछे पड़ा रहा दिनभर शाम के ढलते दियारे को लेकर अब कहां फुरसत कि अपने पन्ने को सीधा करूं ? पढूं, वह Read more…

साहित्य

शीत लहर में मृत्यु 

आज बह आए हैं आँसू तुम्हारी आँखों से हिमानी की एक – एक बूंद रिस रही है घिस रही है उम्र सरक रही है पास आने को जताने कि भ्रम अवरुद्ध हो रहा है ! थोड़ी और आँसुओं की बरसात करो इतनी कि आँचल भीग जाए डर जाए सौभाग्य से शीत Read more…