वरिष्ठ पत्रकार – लेखक डॉ. रामपाल श्रीवास्तव की सद्य: प्रकाशित पुस्तक “बचे हुए पृष्ठ” इक्यावन आलेखों का संग्रह है जिसे शुभदा बुक्स, साहिबाबाद ने प्रकाशित किया है। सर्वविदित है कि रामपाल श्रीवास्तव नवभारत टाइम्स, नवजीवन, स्वतन्त्र भारत, आज, The Pioneer, साकेत शोभा जैसे मशहूर अखबारों से लम्बे समय तक जुड़े रहे हैं तो यह निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि ‘बचे हुए पृष्ठ’ में संकलित आलेख उपरोक्त अखबारों के लिए लिखे गये हैं जिसमें अपने समय की ज्वलंत समस्याओं को रेखांकित किया गया है। इस पुस्तक में निश्चित तौर पर निष्पक्ष पत्रकारिता की झलक मिलती है। लेखक ने लिखा भी है– पत्रकारिता का मात्र ध्येय है – राष्ट्र और मानव हित। दलगत या जातिगत या सम्प्रदायगत प्रतिबद्धताएं विशुद्ध पत्रकारिता के लिए कोई मायने नहीं रखतीं।
         ” बचे हुए पृष्ठ ” का पहला आलेख ‘सिद्ध शक्तिपीठ देवी पाटन’ है। देवी पाटन एक धार्मिक स्थल है जो बलरामपुर जिले के तहसील तुलसीपुर में स्थित है। हिन्दू धर्म में इस स्थान का विशेष महत्व है। देश के विभिन्न भागों में अवस्थित 51 शक्तिपीठों में इसका 26वां स्थान है। ‘चश्म-ए-ख़िरद को अपनी तजल्ली से नूर दे!’ आलेख में गायत्री समाज पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। लेखक ने लिखा है – ‘इस समाज ने बड़ी संख्या में दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को पुरोहित बनाकर अभूतपूर्व कार्य किया है। आचार्य श्रीराम शर्मा स्वयं देवपुरुष थे, लेकिन अपना यज्ञोपवीत संस्कार कायस्थ कुल (श्रीवास्तव) के पं. मदनमोहन मालवीय जी से कराया था।’ लेखक के मतानुसार गायत्री मंत्र कुर‌आन की सूरह फ़ातिहा के भावार्थ से मिलता-जुलता है। रामपाल जी ने आगे लिखा – ‘जनाब साबिर अबोहरी उर्दू पत्रिका ‘हमारी ज़बान’ (8 म‌ई 1994, पृष्ठ 6) में कुछ ऐसा ही ख़याल ज़ाहिर करते हैं। डॉ. मुहम्मद हनीफ़ शास्त्री ‘महामंत्र गायत्री एवं सूरह फ़ातिहा’ विषय पर रचे हुए अपने शोध प्रबन्ध में इस मंत्र को सूरह फ़ातिहा के निकट भावार्थ वाला बताया है। यह भी कहा जाता है कि डॉ. मुहम्मद इक़बाल की ‘आफ़ताब’ शीर्षक नज़्म भी गायत्री मंत्र के भावार्थ से मेल खाती है।’
          ‘बेहतर जीवन कुछ विचार’ में रामपाल श्रीवास्तव ने देश और दुनिया में बढ़ती आर्थिक असमानता पर विचार व्यक्त किये हैं और अपने सुझाव भी रखें हैं। नागरिकों को औसत सीमा तक संपत्ति रखने का अधिकार और प्रकृति की संपदा पर प्रत्येक नागरिकों को समान आवंटन का मुद्दा प्रमुख है। लेखक का कथन है कि अन्याय से उत्पन्न इन अनेक समस्याओं का एकमात्र स्थाई और सरल समाधान अर्थ का न्यायपूर्ण वितरण है।
         संसाधनों के निस्तारण के लिए जो सुझाव लेखक ने दिये हैं, मुझे लगता है कि वह इस देश में संभव ही नहीं है। जिस देश में ऊपर से नीचे तक शोषक ही शोषक हों, वहां ऐसी कल्पना ही हास्यास्पद है। राजनीतिक पार्टियां वोट हासिल करने से पहले हुंकार भरती हैं गरीबों के लिए और वोट मिलते ही पैलग्गई करती हैं अमीरों की। जहां त्योहारों के आते ही हर ज़रूरत की चीज़ों के दाम दुगने हो जाते हैं, जहां आपदा में अवसर तलाशे जाते हों, वहां लेखक के ये सुविचार क्या मायने रखेंगे या रखते हैं; मैं क़यास भी नहीं लगा पा रहा हूं। यहां डॉ. वेदप्रताप वैदिक के विचार देश के हालात को स्पष्ट करने के लिए काफी है– देश में जितनी भी संपदा पैदा होती है, उसका 40% सिर्फ 1% लोग हजम कर जाते हैं। जबकि 50% लोगों को उसका 3% हिस्सा ही हाथ लगता है। ये जो 50% लोग हैं, इनसे सरकार जीएसटी का कुल 64% पैसा वसूलती है जबकि देश के 10% सबसे मालदार लोग सिर्फ 3% टैक्स देते हैं। इन 10% लोगों के मुकाबले निचले 50% लोग 6 गुना टैक्स भरते हैं (तथ्य भारती जनवरी 2023)। हालांकि रामपाल श्रीवास्तव जी ने इसके पीछे निजी संपत्ति की गोपनीयता का कानून को मुख्य ज़िम्मेदार माना है। लेखक ने अपने अन्य आलेखों में पूंजीवादी, साम्राज्यवाद और अव्यवस्थित राजनैतिक संरक्षण पर बेबाकी से चर्चा की है।
         ” ई.वी.एम. ख़ुलासा : हम्माम में सभी नंगे ” आलेख के शीर्षक से ही पता चल जाता है कि ईवीएम का राजनीतिक पार्टियां जनता के बीच जो चिल्ल-पों मचा रही हैं, वह महज़ दिखावा कर रही हैं। लेखक ने लिखा है– साइबर एक्सपर्ट सैयद शुजाअ (जो भारत की ईवीएम को डिजाइन करने वाली टीम के सदस्य रहे हैं) ने दावा किया है कि भारत में 2014 के आम चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन हैक की गई थी। सभी बड़ी पार्टियों समेत 12 पार्टियों ने हैकिंग कराई।
           शुजाअ के मुताबिक –’ हिन्दुस्तान में 9 सेंटर ऐसे हैं, जहां से डेटा ट्रांसमिट होते हैं। कर्मचारियों को पता ही नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं। उन्हें यही पता है कि वे डेटा इंट्री कर रहे हैं।’ सैयद शुजाअ ने एक चौंकाने वाला दावा यह भी किया कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की हत्या हुई थी, ना कि दुर्घटना क्योंकि उन्हें ईवीएम हैकिंग की जानकारी थी। एन‌आईए अधिकारी तंज़ील अहमद, मुंडे की मौत को हत्या बताते हुए एफआईआर दाखिल करने वाले थे, लेकिन उन्होंने आत्महत्या कर ली।
          लुब्ब-ए-लुबाब यह है कि कोई भी पार्टी ईवीएम पर रोक की पक्षधर नहीं है सिर्फ जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है। हां, यह ज़रूर है कि ईवीएम को वीवी पैट से जोड़ने पर ज़ोर दिया जा रहा है। इसी प्रयास में संभवतः इसी अक्टूबर 2023 माह में सुप्रीम कोर्ट में वीवी पैट की पर्चियों की गिनती की मांग को लेकर एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने याचिका दायर की है।
           “जुर्म के पादाश में” आलेख में दाग़ी सांसदों-विधायकों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने की चर्चा है जिसमें पक्ष-विपक्ष सभी पार्टियों के चेहरे से नक़ाब उतार कर फेंका गया है। “स्वेच्छाचारी के बुरे नतीजे” में समलैंगिकता और उसकी मान्यता के मुद्दे पर चर्चा की गई है। रामपाल श्रीवास्तव ने लिखा है – इतिहास गवाह है कि इंसान ने जब सीमा एवं मर्यादा का उल्लंघन किया है, तो वह एक ऐसी बीमारी में मुब्तिला हो गया है, जो आज तक लाइलाज है। आज भी एड्स का इलाज संभव नहीं है। इसके लिए अब तक किये गये शोध प्रयास विफल रहे हैं। इसी बीच कुमार्गगमन के नतीजे में एक नई बीमारी ने दस्तक दी है, उसका नाम है–’सेक्स सुपरबग’। यह एड्स से भी ज़्यादा ख़तरनाक बीमारी है।
          भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने की कोशिशें जारी हैं। सितम्बर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली संविधान पीठ ने सेम सेक्स के रिश्ते को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला दिया था और आईपीसी की धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द कर दिया था फिर भी समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी दावा नहीं किया जा सकता है।
          देश भर की 18 समलैंगिक जोड़ों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर 2023 को फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों– एसके कौल, रवीन्द्र भट्ट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ केन्द्र के इस विचार से सहमत थी कि कानून के साथ छेड़छाड़ करने से अन्य कानूनों पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि – ‘कानून समलैंगिक जोड़ों की शादी करने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है। इसके लिए कानून बनाना संसद का काम है।’
           ऐसे में समलैंगिक विवाह को लेकर सारी उम्मीदों पर अभी भी पानी फिरा नहीं है। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार 25 लाख पुरूष समलैंगिक हैं। इनमें से 7% से ज़्यादा एचआईवी संक्रमित हैं। विश्व के 33 देशों में से नीदरलैंड पहला देश है जिसने सन् 2001 में समलैंगिक शादी को मान्यता दी।
       “ढांचे के गुनहगार” बाबरी मस्ज़िद की शहादत को लेकर लिखी गई है। बाबरी मस्ज़िद को ढहाने के जिम्मेदार सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी जैसे लोग ही नहीं थे बल्कि स्व. राजीव गांधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव भी थे। पर्दे पर भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद ज़रूर थे पर पर्दे के पीछे कमान कांग्रेस के हाथ में थी।
        रामपाल श्रीवास्तव ने कुलदीप नैयर की पुस्तक ‘बियोंड द लाइंस ‘ के हवाले से लिखा है कि – इस किताब में सुप्रसिद्ध समाजवादी मधु लिमये के हवाले से यह बात भी कही गयी है कि जैसे ही कारसेवकों ने ढांचा तोड़ना शुरू किया, नरसिंह राव पूजा करने बैठ गये और जब तक उनके कान में यह ख़बर नहीं पड़ी कि ढांचे का आख़िरी ईंट भी हटा दिया गया है, वे पूजा पर बैठे रहे।
         यही नहीं, मशहूर फ्रेंच लेखक क्रिस्टोफे जैफरलाट, जो पेरिस यूनिवर्सिटी में साउथ एशियन पालिटिक्स पढ़ाते हैं,उनका साफ तौर पर मानना है कि ढांचे को गिराने के लिए राजीव गांधी ज़िम्मेदार थे, क्योंकि उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम समुदाय को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा करने की कोशिश की।
         “बचे हुए पृष्ठ” में रामपाल श्रीवास्तव ने साहित्य, मीडिया, पत्रकारिता, धर्म, समाज, अर्थ, राजनीति, सांप्रदायिकता, शासनिक-प्रशासनिक अव्यवस्था से संबंधित तथ्यपूर्ण आलेख दिये हैं जो उनके जुझारू पत्रकारिता का प्रतीक है। ‘बचे हुए पृष्ठ’ तमाम क्षेत्रों की अच्छाइयों-बुराइयों को अयां करती है जो सच्चाई से आंख ना मूंदकर बुराई और अव्यवस्था को आईना दिखाता है।
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पुस्तक – बचे हुए पृष्ठ
पृष्ठ – 182
मूल्य – 320
प्रकाशक- शुभदा बुक्स, साहिबाबाद।
समीक्षक –
अख़लाक़ अहमद ज़ई 

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