खासमखास

“अवतारवाद – एक नई दृष्टि” का सफल मंतव्य 

अवतारवाद पर  राम पाल श्रीवास्तव जी की किताब “अवतारवाद एक नई दृष्टि ” सच में एक नई दृष्टि लेकर हमारे सामने आई है। किताब को मैंने दो बार पढ़ा। किताब में बहुत से नए पहलुओं के बारे में बात की गई है। इसके लिए बात करने से पहले अध्ययन बहुत Read more…

खासमखास

” ईश्वर, अल्लाह एक है फिर क्यों यह कोहराम ?”

कविता कवि की शान है, हालत उससे जान, सुंदर स्वर्ण कविता की, यही होत पहचान | – आर के रस्तोगी वास्तव में दोहा ने ही हिंदी कविता को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | यह कम शब्दों में बड़ी बात कहने की प्रभावकारी विधा है | अर्थात, गागर Read more…

खासमखास

साहित्य सिलसिला “- साहित्य जगत को नायाब तोहफ़ा

चर्चित उपन्यासकार डॉक्टर अजय शर्मा के सुसंपादन में प्रकाशित पत्रिका ” साहित्य सिलसिला ” का अक्टूबर 2023 अंक मेरे पास कुछ अधिक ताखीर से मिला। इसकी मुख्य वजह मेरा गाँव में रहना है। सेवानिवृत्ति उपरांत मैंने अपने पुश्तैनी आवास को अपना ठिकाना बनाया हुआ है। चूँकि यह देश के पिछड़े Read more…

खासमखास

” शब्द-शब्द ” का प्रखर कवि अंतस 

” मेरी कविता आयास रचित नहीं, अनुभूत होती है, दुःख-सुख, वेदना और संवेदना की प्रसूत होती है, जब जब भी जुल्मोसितम बरपा होता है इंसानियत पर, कवि-अंतस के बृहत शब्द-संसार में स्वतः स्फूर्त होती है। “ “‘शब्द-शब्द’ केवल संजोये हुए शब्द नहीं, अपितु बीते लगभग दो दशकों की वेदना, समवेदना, Read more…

खबरनामा

मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ते हुए

“बचे हुए पृष्ठ ” द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव विधा : आलेख शुभदा बुक्स द्वारा प्रकाशित पृष्ठ संख्या : 181 मूल्य : 320.00 समीक्षा क्रमांक :112 समीक्षा का ब्लॉग लिंक : https://atulyakhare.blogspot.com/…/Bache-Huye-Prisht-By… समय समय पर उपजी भिन्न भिन्न राजनीतिक परिस्थितियों एवं उनसे संबद्ध ज़ुदा जुदा परिवेशों पर एवं विभिन्न ज्वलंत Read more…

खासमखास

लंबे अनुभव और समग्र दृष्टि के द्योतक हैं ‘बचे हुए पृष्ठ’

पत्रकारिता के लिए यह सबसे दुःखद समय है। या तो आप वो लिखें और बोलें जो सत्ता में बैठे लोग चाहते हैं या फिर पुलिसिया हथकंडे का शिकार होकर जेल जाने के लिए तैयार रहिए। यह बुराई किसी एक सरकार की नहीं बल्कि वर्तमान समय की है। सत्ता में कौन है Read more…

खासमखास

कस्तूरी कुंडल बसे

कवि और लेखक अपने मन की बात नहीं कहता वह जन मन की बात कहता है। जिसे आमजन कहना तो चाहता है पर शब्दों या परिस्थितियों के अभाव में नहीं कह पाता लेकिन वही आदमी जब साहित्य की किसी धारा से जुड़ता है और उसे लगता है कि अरे यहां Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

“अँधेरे के ख़िलाफ़ ” एक सार्थक पहल

“अँधेरे के ख़िलाफ़ ” काव्य संग्रह द्वारा : राम पाल श्रीवास्तव ‘अनथक’ समदर्शी प्रकाशन गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित पृष्ट संख्या: 128 मूल्य : Rs. 200.00 “ ख़ाबे हस्ती मिटे तो हमारी हस्ती हो , वरना हस्ती तो ख़ाब ही की है” जब जीवन की विसंगतियाँ और त्रासद स्थितियाँ सामने आती हैं Read more…

अतिथि लेखक/पत्रकार

“अँधेरे के ख़िलाफ़”-जैसे मैंने समझा

वरिष्ठ लेखक आदरणीय राम पाल श्रीवास्तव जी का काव्य संग्रह “अँधेरे के ख़िलाफ़” कुछ दिनों पहले प्राप्त हुई थी. समय अभाव के कारण पढ़ न सका. इधर कुछ समय मिला तो पूरी किताब पढ़ डाली. किसी पुस्तक की समीक्षा लिखना मेरे लिए अत्यंत दुरूह कार्य है. किसी भी लेखक की Read more…

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बारंबार पढ़े जाएँगे ” पढ़े जाते हुए शब्द “

” पढ़े जाते हुए शब्द ” हिंदी के यशस्वी कवि दिलजीत दिव्यांशु की चयनित कविताओं का संग्रह है, जिसका संपादन किया है वरिष्ठ कवि एवं लेखक बलवेंद्र सिंह ने | दिलजीत दिव्यांशु मानवीय संवेदना के कवि है, जिन्होंने जीवन को इंतिहाई बारीकी से समझा है और उसके मर्म को अपने Read more…

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अदब की ग़ज़ब दास्तान ” बलरामपुर से कंजेभरिया “

लब्ध प्रतिष्ठ लेखक पवन बख़्शी जी की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ” बलरामपुर से कंजेभरिया ” पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ | पुस्तक कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक से लेकर समसामयिक घटनाओं को समाहित किए हुए है | वैसे यह मूलतः बलरामपुर के इतिहास की परतें खोलती है और यहां की विशेषकर साहित्यिक, Read more…

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अवतारवाद की अवधारणा

इस समय देश में धर्म पर बात करना जोखिम भरा काम है। अध्यात्म की बातें करना उस समय और भी दुरूह हो जाता है जब सहमति – असहमति के बीच हो रही हो। धर्म अनपढ़ अथवा कम पढ़े – लिखे लोगों के दरम्यान अंधविश्वासों के बीच झूल रहा है, तो Read more…

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नाग संस्कृति संसार के आश्चर्यों में शुमार !

आस्था प्रकाशन, जालंधर से प्रकाशित अंग्रेज़ी पुस्तक ” Shri Vasuki Nag and Nag Cultire ” पिछले दिनों हस्तगत हुई | 112 पृष्ठीय इस पुस्तक के लेखक हैं – धर्मकांत डोगरा और चंद्रकांत शर्मा | इसमें आठ अध्याय हैं, जो सभी प्रासंगिक और विषयानुकूल हैं | पहले में परिचय है, जिसमें Read more…

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प्रेम बादल नहीं, आकाश लगता है 

” प्रेम बादल नहीं, आकाश लगता है ” – यह पंक्ति है, हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ कवि मोहन सपरा की, जिसको उन्होंने ” रंगों में रंग  … प्रेम रंग ” में समाविष्ट किया है | ऐसा उन्होंने क्यों लिखा ? इसलिए कि वे प्रेम भरे जीवनरूपी रंग में गहरे उतरे हैं Read more…

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सुघड़ शब्दों की साधना है ” उम्मीद की हथेलियाँ ” 

सुघड़ शब्दों की साधना है ” उम्मीद की हथेलियाँ “ ……. फगवाड़ा के प्रखर कवि दिलीप कुमार पांडेय की ” उम्मीद की लौ ” अभी कुछ दिनों पहले मेरे पढ़ने में आई थी, जिस पर मैंने अपनी सहज ही विचाराभिव्यक्ति प्रकट की थी और बेसाख़्ता सोच बैठा था कि कविता Read more…