वरिष्ट लेखक पत्रकार रामपाल श्रीवास्तव जी की नवीनतम पुस्तक समीक्षा संग्रह “नई समीक्षा के सोपान ” जिनमें 31 पुस्तकों की ख्यातप्राप्त रचनाकारों द्वारा रचित कविता संग्रह, कहानी संग्रह और उपन्यास शामिल है, की बहुत ही उम्दा समीक्षा की है।
पुस्तकों और कविता संग्रह की समीक्षा वास्तव में एक चुनौतीपूर्ण काम है। समीक्षा पढ़ते हुए समीक्षक के साहित्यिक ज्ञान और समझ के सक्षात् दर्शन होते हैं। रामपाल श्रीवास्तव जी की समीक्षा में निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता दोनों होती है, जो उनकी पिछली पुस्तक समीक्षा संग्रह ” जित देखूँ तित लाल” में हम पाठकों ने स्पष्ट पाया है। रामपाल श्रीवास्तव जी की समीक्षा पाठकों के लिए बहुत ही मूल्यवान है क्योंकि यह उनकी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया और अनुभव को दर्शाती है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि रामपाल श्रीवास्तव की समीक्षा पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे कि मूल पुस्तक पढ़ने को मिल गया है।
समीक्षा संग्रह में शामिल पुस्तकों में अख़लाक़ अहमद जई के उपन्यास “मामक सार” और “सोख्ता” को पहले पढ़ चुका हूँ इसलिए इसकी समीक्षा पढ़ते हुए बहुत ही मज़ा आया। वरिष्ठ लेखक पवन बख्शी जी की पुस्तक “अदब की ग़ज़ब दास्तान बलरामपुर से कंजेभरिया” को पढ़ने की ललक जाग उठी है। कहानी संग्रह “शिगूफा”, “तृप्ति की बूंद”, “डेढ़ आँख से लिखी कहानियां” और “आख़िरी शहतीर” भी पढ़ना चाहूंगा। सबसे महत्वपूर्ण “हनुमान चालीसा” के रचियता पर तमाम विवादों पर विराम देते हुए रामपाल श्रीवास्तव जी ने ऐतिहासिक खुलासा किया है।
रामपाल श्रीवास्तव जी का “नई समीक्षा के सोपान” एक महत्वपूर्ण योगदान है जो समीक्षा के क्षेत्र में नई दृष्टि प्रदान करती है, पुस्तक की शैली और भाषा स्पष्ट और समझने योग्य है जो हम पाठकों के लिए उपयुक्त बनाती है।
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“नई समीक्षा के सोपान” की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता
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