hindi poem by mayar

कविता कवि की शान है, हालत उससे जान,

सुंदर स्वर्ण कविता की, यही होत पहचान |
– आर के रस्तोगी
वास्तव में दोहा ने ही हिंदी कविता को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | यह कम शब्दों में बड़ी बात कहने की प्रभावकारी विधा है | अर्थात, गागर में सागर जैसी क्षमता रखता है | ऐसे ही दोहे मुझे डॉक्टर नरेश मायर ‘ बंधु ‘ के सद्य: प्रकाशित 56 पृष्ठीय पुस्तिका ” प्यार के दोहे ” में पढ़ने को मिले | शिवा बुक्स, दिल्ली से छपी इस पुस्तिका में 39 प्रभागों में केवल प्यार की ही बातें नहीं हैं, अपितु जीवन सत्व और मर्म के भी दोहे हैं, जो हमें अध्यात्म से जोड़कर जीवन को सार्थक रूप देते हैं | जीवन रस की ऐसी दरिया बहाते हैं कि जिसमें आत्मबोध के साथ परम आनंद की सहज और नैसर्गिक अनुभूति की प्राप्ति होने लगती है और जीवन का उद्देश्य और उत्थान भी स्पष्ट होने लगता है | कुछ ऐसे ही दोहों पर दृष्टिपात करने का प्रयास करते हैं –
” जीवन का अंतिम प्रहर अब भी मन नादान |
कहीं उलझ कर रह गया मुक्ति नहीं आसान |
जानो अपनी हैसियत ख़ुद को लो पहचान |
जान स्वयं को चाँद तक पहुँच गया इंसान ||
यह जीवन का सार है गाएं वेद पुरान |
प्यार करो मिल जाएँगे प्रेमरूप भगवान | “
दूसरी ओर कवि का यह भी पैग़ाम आता है कि प्रेम आसान नहीं | इसलिए पहले धुनो, फिर इस मार्ग को चुनो –
” प्यार करो पर सोच लो पहले बार हज़ार |
जो कूदा उबरा नहीं डूब गया मझधार ||
नाव फँसी मजधार में टूट गई पतवार |
प्रियतम से मिलना मुझे कैसे जाऊँ पार ||
अब तो केवल हो तुम्हीं मेरे खेवनहार |
हे प्रभु इस मझधार कर दो नैया पार ||”
आज नफ़रत का बाज़ार गर्म है | निहित घिनौने और मस्मूम उद्देश्य के लिए इंसान के बीच नकारात्मकता की दीवार खड़ी करने की कोशिश करने के लिए भाग-दौड़ करते नहीं थकते | इस माहौल में कवि का यह आह्वान स्तुत्य है –
” मंदिर मस्जिद एक हैं कहीं झुका लो माथ |
गाली देंगे लोग लोग पर वह तो होगा साथ ||
ईश्वर,अल्लाह एक है फिर क्यों यह कोहराम |
दोनों में अंतर नहीं ख़ुदा कहो या राम ||
पुस्तिका का मुखपृष्ठ बड़ा ही आकर्षक बंब पड़ा है | जो डिजाइन पेश किया गया है, वह अर्थपूर्ण और मानीख़ेज़ है | कवि को हार्दिक शुभेच्छा के साथ भावी सर्जना के प्रति पेशगी मुबारकबाद !
– Dr RP Srivastava
Chief Editor ” Bharatiya Sanvad “

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