आज असीम भैया की प्रथम पुण्यतिथि है | 65 वर्ष की अवस्था में वरिष्ठ पत्रकार और लब्धकीर्ति साहित्यकार सत्य प्रकाश असीम का कोरोना के चलते देहरादून में तीन मई 2021 को निधन हो गया था | उन्हें कई वर्षों से पार्किंसन रोग ने जकड़ रखा था और दिल्ली की डॉक्टर सुधा का इलाज चल रहा था | वे लगभग 32 वर्ष से दिल्ली में थे और अंतिम समय तक दैनिक ‘ आज ‘ के राजनीतिक संपादक थे | दिल्ली में उनसे अक्सर भेंट हो जाया करती थी | वे चाहते थे कि मैं उनके साथ काम करूं , परन्तु ऐसा संभव नहीं हो सका | सरोज भाभी 1990 में ही परलोक सिधार गई थीं | उनकी रिक्तता उन्हें सदा खलती रहती थी | भैया का जाना भी ख़ूब ही रहा , क्योंकि रोग ने उन्हें परेशान कर रखा था | भाभी जी के न रहने से इसका विस्तार हो चुका था | असीम भैया के गीत की ये पंक्तियाँ ख़ुद उन पर बाक़ायदा लागू होती हैं –

यूँ तो अपनी बस्ती से /
हर रोज़ जनाज़े उठते हैं /
हम निकले तो बस्ती बोली /
वाह गए ! क्या ख़ूब गए |

[ ‘ सुन समन्दर ‘ पृष्ठ 91 ]

  मुझे उनके साथ लगभग दो वर्ष कार्य करने का सुअवसर प्राप्त हुआ | मैं उन्हें भैया कहता था और बड़े भाई की भांति वे आदरेय थे ही | भैया इस मायने में मुझसे अधिक सौभाग्यशाली थे कि उन्हें पत्रकारिता के आरंभिक दौर में पापड़ नहीं बेलने पड़े | उन्होंने 1978 में ‘ आज ‘ के मुख्यालय वाराणसी से जुड़ गए और बाक़ायदा पत्रकारिता शुरू कर दी | कोई व्यक्ति शून्य से कितनी उन्नति कर सकता है, यह देखना हो तो असीम भैया के जीवन को देखना चाहिए | काशी विद्यापीठ [ अब महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ ] से राजनीति शास्त्र में एम ए  करते ही वे ‘ आज ‘ के संपादकीय विभाग में आ गए और प्रूफ़ रीडिंग से कैरियर की शुरुआत की | ज़हीन थे ही | किसी चीज़ को पत्रकारिता के नज़रिए से देखने की उनमें ग़ज़ब की सलाहियत थी |
उनकी प्रतिभा को देखते उन्हें अन्य कार्य सौंपने पर विचार हुआ, तो उन्हें नया काम मिला , वह भी निरापद ! क्योंकि ‘ आज ‘ में कभी कोई रिस्क नहीं लिया जाता था | समाचार – पत्र के स्तर को दिनानुदिन उठाने और उसे बनाए रखने की हर संभव कोशिश की जाती | प्रूफ़ का काम बड़ा जटिल होता है , जिसे भैया ने बख़ूबी निभाया | ‘ आज ‘ में तो भाषा की शुद्धता पर विशेष और प्राथमिक ध्यान दिया जाता था | असीम भैया को नया काम मिला खेल पृष्ठ को सँवारने का | यह पृष्ठ ‘ आज ‘ ने ही सर्वप्रथम आरंभ किया था और इसकी देखादेखी अन्य समाचार – पत्रों ने इसे अपनाया | असीम भैया ने इसे ख़ूब पैना और रोचक बना दिया था | खेल रिपोर्टिंग , विश्लेषण और प्रस्तुति के भी वे सिद्धहस्त थे , यहाँ तक कि जब वे ‘ आज ‘ पटना के संपादक थे , तो भी कभी – कभी खेल पर विशेष संपादकीय भी लिख डालते थे | भैया की लेखन – शैली ऐसी थी कि ‘ आज ‘ प्रबंधन भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका |
‘ आज ‘ [ वाराणसी ] में पांच वर्ष भी ठीक से नहीं बीते थे कि उन्हें 1983 में ‘ आज ‘ पटना का स्थानीय संपादक बना दिया | वे पटना चले गए | उनका जन्म 1956 में उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले [ मुहम्मदाबाद ] के एक संभ्रांत शिक्षक परिवार में हुआ था | उनके पिताश्री पंडित सुमेर पांडेय नेशनल इंटर कालेज क़सिमाबाद में प्राचार्य थे | असीम भैया की विचारधारा ठोस मानववादी थी | उन्होंने कर्मक्षेत्र में कभी न तो जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया और न ही जाति को किसी प्रकार तरजीह दी | बहुत से लोगों को आज तक पता ही नहीं कि वे किस जाति के थे | वे बातचीत में जाति की भर्त्सना करते और इसे भारतीय समाज के विनाश का कारण मानते थे |
पटना ‘ आज ‘ को असीम भैया की इसलिए भी सख़्त ज़रूरत थी , क्योंकि वहां का स्टाफ मेहनत करने से कचाता था और इस प्रकार वहां विद्वता का अभाव साफ़ दिखाई पड़ता था | लोग गुटबंदियों में फंस गए थे और समाचार – पत्र का स्तर लगातार गिरता जा रहा था | असीम भैया इस स्थिति पर कुछ ही समय में क़ाबू पा लिया , लेकिन वे लोग लगातार सक्रिय रहे जो प्रदेश के बाहर का नेतृत्व स्वीकार नहीं करते थे और हठधर्मिता के शिकार थे | असीम भैया ने इसकी परवाह नहीं की | ऐसे लोगों को दबाव में लिया जो सरकशी करते थे | पटना के संपादकीय विभाग में लगभग पचास स्टाफ़ थे | भैया को जब काम में कुछ दुश्वारी नज़र आई , तो लखनऊ से प्रमोद त्रिपाठी को ले गए और वाराणसी से प्रसून दास को | कुछ अधिक समय पश्चात् मुझे भी पटना भेज दिया गया | वहीं मेरा पहली बार असीम भैया से परिचय हुआ | उन्हें ठीक से जाना और उनके अधीन काम करने का आनंद प्राप्त किया |
दरअसल मैं ‘ आज ‘ से अनायास जुड़ गया था , लेकिन मेरे मन के किसी न किसी कोने में यह बात आती थी कि यदि मुझे किसी बड़े समाचार – पत्र में काम करने का अवसर मिले , तो वह ‘ आज ‘ ही हो | उत्तर प्रदेश में उस समय ‘ आज ‘ ही था , जिसका कोई विकल्प और मुक़ाबिल नहीं था | वह उस समय बिहार मिलाकर 11 स्थानों से प्रकाशित होता था , जो बाद में मेरे कार्यकाल में 13 स्थानों तक पहुंचा | ‘ आज ‘ एक परिष्कृत समाचार – पत्र था | वाराणसी से उस समय गांडीव , जनवार्ता , सन्मार्ग , जनमुख आदि प्रकाशित होते थे , जिनकी ‘ आज ‘ से कोई स्पर्धा नहीं थी | ये सब सांध्यकालीन भी थे और हैं |
मेरी ‘ आज ‘ से संबद्धता के पीछे एक घटनाक्रम है , जिसका यहाँ उल्लेख विषयातीत बात न होगी | मेरे संपादकत्व में उस समय ‘ पराड़कर सन्देश ‘ [ हिंदी साप्ताहिक ] का प्रकाशन होता था | वाराणसी के रत्नाकर पार्क [ आनंद बाग़ , भेलूपुरा ] के सामने इसका कार्यालय था | इसमें प्रकाशित एक आर्टिकल पर कुछ लोगों का विरोध इतना बढ़ा कि मेरे कार्यालय पर बम फेंक दिया गया | दीवाल गिर गई और दफ़्तरी महोदय घायल हो गए , जो उस समय अख़बार का बंडल / पैकेट बना रहे थे | स्थिति बिगड़ी , तो क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया गया | आर एस टोलिया उस समय ज़िलाधिकारी थे , जो बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव बनाए गए |
दूसरे दिन बमबारी और कर्फ्यू लगने का समाचार वाराणसी के सभी समाचार – पत्रों में छपा | टोलिया जी ने मुझे बुलाया और पूरा मामला जाना | यह कहा कि इधर बाहर ज़रा कम निकलना | मैंने उन्हें बताया था कि कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया था | हालात को देखते हुए मैंने दूसरे दिन कार्यालय न जाने की योजना बनाई | मैं कोयला बाज़ार में रहता था, जो रत्नाकर पार्क से काफ़ी दूरी पर था | मैं किराए के रूम से पैदल ही निकल पड़ा | साइकिल नहीं ली | जाना कहाँ है ? पता नहीं | चलते – चलते लोहामंडी पहुंचा | परमात्मा को मुझे कहीं और ले जाना था | मैं लोहामंडी की दूकानों की साइड से धीरे – धीरे आगे बढ़ रहा था | दिन के लगभग बारह बजनेवाले थे | अचानक एक रिक्शा मेरी ओर आता हुआ दिखाई दिया , जिसमें मेरे गुरुवर पंडित लक्ष्मी शंकर व्यास जी बैठे हुए थे | वे ‘ आज ‘ के प्रधान संपादक थे और मैंने उन्हीं के गाइडेंस में एम जे एम सी का डिजर्टेशन [ पराड़कर जी का हिंदी भाषा और पत्रकारिता को अवदान ] पूर्ण किया था | गुरुजी ने ने मेरी अपना हाथ उठाकर मुझे पुकारा , ‘ रामपाल जी   … कैसे हो ? ‘ रिक्शा धीरे – धीरे आकर मेरे पास रुक गया |
मैंने गुरुजी को प्रणाम किया | गुरुजी कुशल – क्षेम पूछने लगे – ‘ भाई , बताओ तुम सकुशल हो ? आज समाचार – पत्रों में ‘ पराड़कर सन्देश ‘ के दफ़्तर पर हमले का दुखद समाचार पढ़ा | बहुत दुःख हुआ | मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूँ | ‘ गुरुजी चिंतित दिखे मैंने उन्हें बताया कि मैं कुशल से हूँ | कल शाम जब यह घटना घटी , तो मैं कार्यालय में नहीं था | हाँ , दफ़्तरी घायल हुए हैं , जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है | ‘ रिक्शा रुका रहा | गुरुजी घटना का विवरण पूछते जा रहे थे | मैं थोड़ा आश्चर्यचकित था गुरुजी के अपनत्व को देखकर , क्योंकि वे इस प्रकार बात नहीं करते थे | बात ही बात में कहने लगे , ‘ अब तो ख़ाली होगे | ‘ आज ‘ में काम करना हो, तो कल इसी समय के आसपास कार्यालय में मेरे पास आ जाना।’ मैंने कहा , ‘जी गुरुजी।’ मुझे तो मन की मुराद मिल गई। वहां किसी की सुगमता  नियुक्ति नहीं होती थी | दूसरे दिन सघन टेस्ट के बाद मुझे कार्य का अवसर मिल गया। मैं जनरल डेस्क पर विश्वनाथ सिंह जी ( दद्दू ) और हरिवंश तिवारी जी के मातहत काम करने लगा। कुछ ही महीने के अंतराल पर यादवेश जी ( प्रबंधक, कार्मिक ) ने मुझे बुलाया और कहा कि आपका काम हम सबको पसंद आ रहा है। आपकी सर्विस स्थाई करते हुए सब एडीटर के तौर पर आपको पटना भेजा जा रहा है। आपकी वहां अधिक आवश्यकता है। उन्होंने मुझे इस संदर्भ में एक लेटर भी दिया।
मैं पटना पहुंच गया। फ्रेजर रोड स्थित आज कार्यालय स्टेशन के निकट ही था। असीम भैया से भेंट की और उन्हें यादवेश जी का पत्र दिया। दिन के लगभग चार बजे थे। असीम भैया ने कहा कि आज विश्राम करो, कल से ड्यूटी पर आना ग्यारह बजे, लेकिन अगर चाहो तो अभी काम शुरू कर दो। मैंने कहा कि समय काटने के लिए भी व्यस्तता चाहिए, इसलिए भैया काम बताइए। असीम भैया ने अविनाश चंद्र जी , जो उस समय न्यूज एडीटर थे, से मुख़ातिब होकर कहा कि इन्हें काम दीजिए।अविनाश जी ने पी टी आई की तीन और यू एन आई की पांच खबरें जो अलग अलग कतरनों के साथ पिन थीं, यह कहते हुए मुझे थमा दीं कि इन आठों का अलग – अलग समाचार बना कर आज चले जाना। तेरह स्टॉफ की जनरल डेस्क पर ड्यूटी थी और लेकर चौदह हो गई। मैंने जल्द ही आठों ख़बरें बना दीं। मुश्किल से सवा घंटे लगे। इन्हें अविनाश जी को दिया। वे थोड़ा चकित होकर कहने लगे , बहुत जल्दी हो गया। मैंने ख़बरों के जो शीर्षक दिए थे,उनके आकार – प्रकार का भी उल्लेख किया था और प्वाइंट साइज़ का भी। अविनाश जी ने इन्हें जांचा। प्रसन्न हुए और मेरे द्वारा बनाई हुई उन ख़बरों को लेकर असीम भैया के पास गए। उनसे कहा,रामपाल जी तो कमाल के हैं । सभी ख़बरों को बनाकर बाक़ायदा एडिट कर दिया। हमें ऐसे ही स्टाफ की आवश्यकता थी। असीम भैया कुछ न बोले । वे उन ख़बरों का एक – एक कर अवलोकन करने लगे। कुछ देर तक देखने के बाद अविनाश जी से पूछा, आपने इनकी ख़बरों में कहीं करेक्शन नहीं लगाया ? आवश्यकता ही नहीं पड़ी। अविनाश जी ने जवाब दिया। इसी बीच प्यून राम करण, जिन्हें रामकरन कहा जाता था, आए और संपादक जी से कहने लगे कि दादा ( बेनी माधव चटर्जी, प्रबंधक ) ने कहा है कि राम पाल जी काम कर चुके हों , तो पास के विजय होटल में मैं उनके सामान रख आऊं, जहां उन्हें ठहरना है। असीम भैया ने मुझसे होटल जाने के लिए कहा। मैं चला गया, जहां खाने का प्रबंध भी प्रबंधन की ओर से था।

  समय गुज़रा। दो सप्ताह बीत गए। मुझे शिफ्ट इंचार्ज बना दिया गया। सिटी और लेट सिटी एडीशन का प्रभारी …. मेरी जिम्मेदारियां बढ़ गईं। भैया का आदेश था कि प्रदेश सरकार के बारे में या उसके नेतृत्व के संबंध में टेलीप्रिंटर या ‘आज ‘ के ब्यूरोज से कोई खबर आए तो फोन पर कॉन्टैक्ट करना। ऐसा मैं करने लगा और संपादक जी के निर्देशानुसार इनकी ख़बरें लगाता। उस समय बिंदेश्वरी दुबे मुख्यमंत्री थे। एक रात उनके बारे में यह ख़बर आई कि कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री का बदल तलाश कर रहा है। मैंने भैया को बताया , तो उन्होंने निर्देशित किया कि इसे न देना। भैया कुछ समय तक मुख्यमंत्री दुबे के मीडिया सलाहकार भी थे। एक बार मैंने आरएसएस से जुड़ी एक ख़बर प्रकाशित कर दी, जो मुझे संपादक जी की सहमति के बिना नहीं देनी चाहिए थी। हुआ यह था कि भागलपुर से संघ के तीन सदस्य रात के लगभग दस बजे ‘आज’ कार्यालय आए और मुझे अपने कार्यक्रम की ख़बर दी, जिसे मैंने अंतिम पृष्ठ 16 पर लगा दी। वैसे बारह से एक बजे रात तक मैं ख़बरें लेता रहता था। क्राइम बीट के प्रभात रंजन तो अक्सर लेट ही ख़बरें फाइल करते थे। भाई , प्रभात जी, मेरी इस बात पर अन्यथा न लेना। ( प्रभात रंजन आज एक वरिष्ठ और स्थापित पत्रकार हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी दखल बनाए हुए हैं )

दूसरे दिन जब मैं शाम को ड्यूटी पर पहुंचा, तो पता चला कि आरएसएस की ख़बर छपने से भैया नाराज़ हैं। जब मैने काम शुरू किया , तो थोड़ी देर के लिए असीम भैया आए। मेरी ओर देखकर मुंह फेर लिया। कुछ न बोले। चले गए। अभी दो दिन ही बीते थे कि भैया ने मुझे बुलाया। मैं थोड़ा सकपकाया। उनके पास गया, तो कहने लगे कि तुम अच्छा लिखते हो। मैं चाहता हूं कि प्रत्येक सप्ताह देश या विदेश की किसी घटना पर तुम्हारा नाम के साथ विश्लेषण छपे, वह भी पहले पेज की बॉटम स्टोरी बने या पेज तीन की टॉप स्टोरी। मैं प्रत्येक सप्ताह लिखने लगा। शुरू के तीन – चार बार छपने के पहले भैया जी दिखाता। फिर उन्होंने कह दिया कि सीधे फोरमैन उदय सिंह को कंपोज करने के लिए दे दिया करो। मेरा यह लेखन – क्रम काफ़ी समय तक जारी रहा, जब तक कि असीम भैया दिल्ली ‘आज ‘ के दिल्ली ऑफिस में राजनीतिक संपादक नहीं बना दिए गए और मैं दूसरी बड़ी ज़िम्मेदारी संभालने के लिए धनबाद [ ‘ आज ‘ ] नहीं चला गया |
मेरे एक विश्लेषण पर बड़ा विवाद हुआ। मैंने उसी समय सोवियत संघ के विघटन की बात लिख दी थी। इसके कारण भी गिनाए थे, जिस पर सोवियत संघ का उच्चायोग तिलमिला उठा। उसके अधिकारी कोलकाता से पटना पहुंचे और प्रेस कांफ्रेंस करके सफ़ाई दी। मुझ पर सी आई ए का एजेंट होने का आरोप मढ़ा। प्रेस कांफ्रेंस को कवर करने के लिए आज के स्टाफ वीरेंद्र को भैया ने भेजा था।
इस पूरी ख़बर को आज ने खंडन के तौर पर नहीं छापा। असीम भैया का साफ़ निर्देश था कि ‘ विश्लेषण का खंडन नहीं छपेगा। हां, सोवियत उच्चायोग का वर्जन ‘ एक अख़बार ‘ लिखकर छाप दो।’ उस समय पटना आज का सर्कुलेशन एक लाख बीस हज़ार के लगभग था।
असीम भैया को मुझ पर काफ़ी विश्वास था। मेरे लिखे विश्लेषण को महीने में एक या दो बार विशेष संपादकीय बनाकर प्रकाशित कर देते, जो आम तौर पर पहले पेज पर स्थान पाता। जब उनको लिखने का मन नहीं होता या अधिक व्यस्त होते, तो उदय सिंह को निर्देशित करते कि राम पाल का कोई आर्टिकल लगा दो। जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं और देर शाम को इसकी घोषणा हुई, तो भैया ने मुझसे कहा कि ‘इस घटनाक्रम पर लिखो विशेष संपादकीय के रूप में।’ मैंने लिखा और पहले पेज पर छपा। ऐसे ही भैया मुझे वरिष्ठ जनों, मंत्रियों  के इंटरव्यू के लिए भेजते। कभी – कभी बड़े लोगों से भी पेन स्लिप होना स्वाभाविक है। जब मैंने जमाअत इस्लामी हिंद के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अबुल लैस का इंटरव्यू लेकर रिपोर्ट फाइल की, तो भैया ने ग़लत सुर्ख़ी लगा दी। स्त्रीलिंग / पुल्लिंग का विभेद था। जब मैंने कहा की शुद्ध यह है, तो कहा,’ ठीक कर लो। मुझे उर्दू में महारत नहीं।’ यह इंटरव्यू पहले पेज पर आठों कालम में टॉप स्टोरी के तौर पर प्रकाशित हुआ। यह इंटरव्यू इसलिए अधिक चर्चित हुआ, क्योंकि इसमें जनसंख्या विस्तार को हतोत्साहित किया गया था। पूरी बातचीत का टेप हमारे पास मौजूद था। सवाल ऐसे कि मौलाना उलझ गए। मेरी इस्लामी मालूमात से दंग थे मौलाना !
भैया ने एक बार कैमूर के डाकुओं से इंटरव्यू के लिए भेजा, जहां मैंने दो दिन बिताए और पूरे एक पृष्ठ पर स्टोरी छपी। अक्सर यही होता था कि दिन में इंटरव्यू आदि का काम करता और रात को कार्यालय की नियमित ड्यूटी करता। ड्यूटी के अतिरिक्त जो भी काम करता, सभी का अलग से पेमेंट होता था, यहां तक कि विश्लेषण के भी।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा का भी इंटरव्यू चर्चित हुआ। यह आज के सभी एडीशनों में छपा, क्योंकि उसे मैंने हरिवंश तिवारी जी के पास भेज दिया था। कलर फोटो की फिल्म भी भेजी, जो सिन्हा जी और उनकी पत्नी किशोरी सिन्हा की थी। यह इंटरव्यू उनके आवास पर लंच के समय लिया था। उस समय मुझे लेकर तीन लोग ही थे। बहुत विस्तार से बात हुई। मैंने ऑफ द रिकार्ड को भी छाप दिया, इसलिए बड़ा हंगामा मचा। यह इंटरव्यू साप्ताहिक परिशिष्ट में प्रकाशित हुआ, जो सभी संस्करणों तक रंगीन पेजों के साथ पहुंचा। इसके आते ही सत्येंद्र नारायण सिन्हा ‘ आज ‘ कार्यालय पहुंचे और भैया से खंडन प्रकाशित करने के लिए आग्रह किया। भैया ने साफ़ जवाब दिया कि जब तक राम पाल जी नहीं चाहेंगे, खंडन नहीं छप सकता। मैंने इन्कार कर दिया, तो सिन्हा जी आज के वाराणसी कार्यालय की ओर रुख़ किया।
असीम भैया सीधे सादे इंसान थे। निश्छल भाव की प्रतिमूर्ति  …. लेखन ऐसा कि ख़बरों के तथ्य बिंब बनकर उत्कृष्ट साहित्य में ढल जाते। भैया का हर लेखन लाजवाब होता | उन्हें लीक से परे लेखन पर बिहार का राजभाषा पुरस्कार भी मिला। उन्होंने ऑडियो विजुअल मीडिया में भी महती योगदान किया, लेकिन अंतिम समय तक आज से ही संबद्ध रहे। उनकी साहित्यिक कृतियों में ‘ सुन समंदर ‘ ( काव्य संग्रह ) और ‘ योगिनी मंदिर ‘ ( उपन्यास ) मंज़रे आम पर आए।

असीम भैया यदा कदा अपनी कविताओं को पंक्तियां गुनगुनाया करते थे। मैंने दो बार ये पंक्तियां सुनीं – एक उनके पटना स्थित आवास पर और दूसरी आज कार्यालय में। ये पंक्तियां इस प्रकार हैं –
प्रेम यज्ञ के हवन पर्व में/ मैं इतना खो जाऊं/
तुम आहुति के हाथ बढ़ाओ/ मैं समिधा हो जाऊं।
जब असीम भैया ने कुछ फ़ुरसत पाकर साहित्यिक लेखन शुरू किया, तो अधिक समय तक इस संसार में नहीं रह सके। कोरोना में प्लाज्मा के पर्याप्त भंडारण का दावा करनेवाली केजरीवाल सरकार असीम भैया को प्लाज्मा नहीं दिलवा सकी और उसके प्रचारात्मक दावों की पोल खुल गई। भैया को शत शत नमन , विनम्र श्रद्धांजलि  …..

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