ये हैं तुलसीपुर की रानी ऐश्वर्य राज राजेश्वरी देवी, जिन्हें तुलसीपुर / बलरामपुर और कभी गोंडा की रानी लक्ष्मीबाई कहा जाता है। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाए। लोक प्रसिद्ध उपन्यासकार अमृत लाल नागर ने 1857 के ग़दर पर आधारित अपने ऐतिहासिक उपन्यास में लिखा है कि यद्यपि वे तुलसीपुर नहीं जा सके,फिर भी गोंडा पहुंच कर तथ्य संकलित किए। राजा देवी बख्श सिंह के बारे में कुछ विस्तार से बताने के बाद तुलसीपुर की रानी के बारे में भी संक्षेप में लिखा। सत्तर के दशक में गोंडा के वरीय साहित्यकार जी पी श्रीवास्तव जो हिन्दी के हास्य साहित्य में उच्च स्थान रखते हैं से भी भेंट की और जानकारियां इकट्ठी कीं। उनके छोटे भाई वी पी सिन्हा से भी मिले, जो पत्रकार थे। तुलसीपुर की रानी के विषय में नागर जी अपनी मशहूर पुस्तक ” ग़दर के फूल “में पृष्ठ 104 पर लिखते हैं –
” श्री वी पी सिन्हा के शब्दों में ‘ तुलसीपुर की रानी हमारे यहां की लक्ष्मीबाई थीं।’ लक्ष्मीबाई भारतीय नारी का प्रतीक थीं। ग़दर की प्रत्येक लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहास का अमर गौरव हैं। इस नाम में अब वह शक्ति आ गई है, जो सदियों तक भारतीय नारी को प्रेरणा प्रदान करती रहेगी।”
हमारा दुर्भाग्य है कि इस महान वीरांगना की याद में हमारे पास कोई भी स्मारक नहीं है ! अंग्रेज़ों ने उनका सब कुछ नेस्तनाबूद कर दिया। किला, महल सब ध्वस्त कर दिया और मलबा समेत अन्य सामग्रियां उठवा ले गए। तुलसीपुर की रानी की मृत्यु 1865 में पचास वर्ष की अवस्था में दक्षिण नेपाल में हुई।
कई दशक पहले “दैनिक जागरण ” में किन्हीं गुप्ता जी एक रिपोर्ट तुलसीपुर की रानी पर सबसे पहले छपी देखी थी। इस रिपोर्ट के बाद मेरे परम मित्र जगदेव सिंह जी, जो गोंडा स्थित ” स्वतंत्र भारत ” के संवाददाता थे और एम एल के कालेज , बलरामपुर में हिंदी के प्रवक्ता भी, ने ” गोंडा – अतीत और वर्तमान ” नामक अपनी पुस्तक मुझे भेंट की थी, जिसमें इस महान वीरांगना का बहुत ही संक्षिप्त परिचय था।
बाद में इस दिशा में क्या प्रयास हुए, मुझे बाहर रहने के कारण कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी। कल मेरे फेसबुक मित्र और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री Ashok Mishra जी ने अपनी पोस्ट पर जो जानकारियां दीं और विशेषकर तुलसीपुर की रानी की याद में तुलसीपुर में स्मारक बनाने की आवश्यकता पर जो बल दिया , वह निश्चय ही समय की एक बड़ी अपेक्षा है। इस हेतु उनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है। आदरणीय मिश्र जी के बताने पर आज मैंने ” ग़दर के फूल ” को जहां – तहां से पढ़ा और इस महान वीरांगना के विषय में जानकारी प्राप्त की। कृतज्ञ हूं आदरणीय मिश्र जी का। आपने अन्य जो पुस्तकें बताई हैं, उन्हें भी पढ़ने की कोशिश करूंगा। ” गोंडा – अतीत और वर्तमान ” मेरे पास है ही।
प्रशासन को चाहिए कि वह तुलसीपुर की रानी की याद में स्मारक बनवाने की मांग पर तत्काल संज्ञान ले और उनका भव्य स्मारक बनवाने की दिशा में अग्रसर होकर आज़ादी के अमृत महोत्सव में चार चांद लगाए… जय हिन्द, जय भारत !
– Dr RP Srivastava
Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad

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