केरलवासी के के के नायर आख़िर सच्चे राम भक्त कैसे बने ? इसकी एक कहानी है | आई सी एस अधिकारी अगस्त 1946 में गोंडा की ज़िम्मेदारी संभालने के लिए भेजे गए | वे वहां के डी एम थे | नायर टेनिस खेलने के शौक़ीन थे | इसी शौक़ ने उन्हें बलरामपुर रियासत के महाराजा सर पाटेश्वरी प्रसाद सिंह से मिलवाया | फिर टेनिस कोर्ट में दोनों की मुलाक़ातें होने लगीं | दोस्ती बढ़ी | नायर उनसे सात साल बड़े थे | नायर का जन्म 11 सितंबर 1907 में केरल के अलेप्पी में हुआ था, जबकि सर पाटेश्वरी का जन्म एक जनवरी 1914 को | जुलाई 1947 में नायर का ट्रांसफर हो गया, फिर भी दोनों में आत्मीय – मधुर संबंध बने रहे | जब ये दोनों टेनिस कोर्ट में होते तो ऐसा लगता कि प्रतिद्वंद्वी हैं, मगर ऐसा न था | इन दोनों का परिचय गोरखपुर स्थित गोरक्ष पीठ के महंत दिग्विजय नाथ जी से हुआ, जो नायर से 13 वर्ष और महाराजा से 20 बरस बड़े थे, लेकिन यह परिचय धीरे – धीरे घनिष्ठता में बदल गया | बात 1947 के आरंभिक दिनों की है, जब महाराजा ने बलरामपुर में महायज्ञ का आयोजन कराया, जिसमें महंत दिग्विजय नाथ जी भी शामिल हुए | आदि शंकराचार्य की परंपरा के प्रसिद्ध दंडी संत स्वामी करपात्री जी भी इस अवसर पर पधारे | उन्होंने राजनीतिक अभिप्रेरणा भरी और देश की आज़ादी के साथ स्वदेशी नेतृत्व की भी बात की | 1948 में उन्होंने रामराज परिषद का गठन किया, तो महाराजा और के के के को उसके कार्यक्रम में आमंत्रित किया | अंग्रेज़ी पत्रिका ‘ ओपन ‘ [ 6 दिसंबर 2012 ई. ]  के अनुसार, हिन्दू महासभा के केंद्रीय मुखपत्र ” हिन्दू सभा वार्ता ”  [ साप्ताहिक ] के 1991 में प्रकाशित एक आलेख में महाराजा, के के के और महंत जी के आपसी संबंधों को विस्तारपूर्वक वर्णित किया गया था | 

नायर ने महंत जी को रामजन्मभूमि के सिलसिले अपनी मदद की वचनबद्धता जताई | के के के नायर, 22/23 दिसंबर 1949 की घटना के समय फ़ैज़ाबाद में डी एम का पद संभाल रहे थे | इस रात की घटना के बाद देवबंदी मस्लक के मुसलमानों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को कुछ इस तरह अपने प्रभाव में ले लिया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द वल्ल्भ पंत और राज्य के गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को पत्र लिखकर निर्देश दिए कि रामलला की मूर्ति तत्काल हटाई जाए | मगर सच्चे राम – भक्त के के के नायर इस बात पर अड़े रहे कि मूर्ति हटाने की घोषणा से ख़ून – ख़राबा होगा | अतः इस काम को वे नहीं अंजाम दे पाएंगे | भले ही उन्हें उनके पद से हटा दिया जाए | पंडित नेहरू परेशान हुए | उनकी उद्ग्निता बढ़ती गई, तो उन्होंने देश के गृहमंत्री सरदार वल्ल्भ भाई पटेल से कहा कि वे मुख्यमंत्री पंत से इस बारे में बात कर लें और मूर्तियों का हटाना सुनिश्चित कराएं | पटेल और पंत में अच्छी दोस्ती थी | वास्तविकता यह थी कि उस वक़्त उत्तर प्रदेश कांग्रेस इस मुद्दे पर पंडित नेहरू के साथ नहीं थी | बहरहाल पंडित नेहरू के हुक्म की तामील में सरदार पटेल ख़ुद लखनऊ पहुंचे और इस बाबत आवश्यक निर्देश दिया | लेकिन फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन डी एम के के के नायर ने कोई बात न मानी | जब पंडित नेहरू ने दोबारा मूर्तियां हटाने को कहा, तो नायर ने सरकार को लिखा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए | देश के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार पीछे हट गई |

के के के नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली | चौथी लोकसभा के लिए वे उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे | इस इलाक़े में नायर हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए कि उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचीं | उनका ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बना | ”युद्ध में अयोध्या” नामक अपनी किताब में हेमंत शर्मा ने मूर्ति से जुड़ी एक दिलचस्प घटना का ज़िक्र किया है | उनके अनुसार, “केरल के अलेप्पी के रहने वाले के के नायर 1930 बैच के आईसीएस अफ़सर थे | फ़ैज़ाबाद के ज़िलाधिकारी रहते इन्हीं के कार्यकाल में बाबरी ढांचे में मूर्तियां रखी गईं या यूं कहें इन्होंने ही रखवाई थीं | बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत के वे ऐसे शख्स हैं, जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट आया और देश के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर इसका दूरगामी असर पड़ा |”

– Dr R P Srivastava, Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad

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