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यह पुस्तक सरदार मनजीत सिंह GK ने 2008 में गिफ्ट की थी, जब वे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष थे। इस 240 पृष्ठीय उर्दू पुस्तक को आर्य समाज के दिग्गज चिंतक लाला दौलत राय ने 1901 में लिखी थी। उन्होंने इसकी प्रस्तावना में 23 जनवरी 1901 तिथि लिखी है और डेरा गाज़ी ख़ान स्थान लिखा है, जो अब पाकिस्तान में है।
मुझे इस पुस्तक को ठीक से पढ़ने का कभी अवसर नहीं मिला। सेवानिवृत्ति के बाद इधर के दिनों में इसे पूरी पढ़ डाली। इस पुस्तक को गुरु मत साहित्य चेरीटेबल ट्रस्ट , अमृतसर ने प्रकाशित किया है। यह पुस्तक का चौथा संस्करण है। 1994 में इसका तीसरा संस्करण भी यहीं से छपा था। पहले और दूसरे संस्करणों के प्रकाशन का डिटेल नहीं है। शायद विभाजन पूर्व छपे होंगे।
तीसरे और चौथे संस्करणों में इस पुस्तक का नाम बदल कर ” दौलत राय की नज़रों में साहिबे कमाल गुरु गोविंद सिंह जी” कर दिया गया है। संभवतः पहले इसका कुछ और शीर्षक रहा होगा। “इल्तमास” ( निवेदन) में इसके 1979 में पंजाबी में अनुवाद होने की बात कही गई है। “पेश लफ़्ज़” ( प्रस्तावना) में यह बात भी है कि मान साहब ( पूर्व अध्यक्ष , पंजाब विधानसभा) के अमेरिका दौरे का एक अंश भी है, जिसमें तीन अमेरिकी जनों से उनकी भेंट हुई। मान साहब लिखते हैं, ( हिंदी अनुवाद ) ” मैं एक दिन बाहर अकेले सैर कर रहा था कि अचानक मेरे निकट से तीन अमेरिकी गुज़रे। उनमें से एक का परिधान पादरियों जैसा था और दूसरे का मिला जुला सा। उन्होंने गुजरते समय मुझसे प्रश्नों के तीन ऐसे तीर छोड़े, जिन्होंने मेरे आंतरिक स्वाभिमान और गैरत को झिंझोड़ कर रख दिया। मैं लज्जित होकर चिंतन – समुद्र में डुबकी लगाने लगा और उन प्रश्नों के उत्तर ढूढने लगा।
पहला प्रश्न था – क्या आप हिन्दुस्तानी हैं?
उत्तर – जी हां।
दूसरा प्रश्न – क्या आप हिंदू हैं?
उत्तर – जी नहीं।
तीसरा प्रश्न – फिर आप क्या हैं?
उत्तर – जी सिख, अर्थात मैंने बड़े गर्व से कहा कि मैं सिख हूं। लेकिन उन्होंने तुरंत कहा, नहीं,तुम फूल ( मूर्ख ) हो। यह मेरा अधिकतम अपमान था, जिसको सहन न करते हुए मैने उनसे पूछने का साहस किया कि किस यथार्थ और कारण से यह ये असभ्य/ अशालीन शब्द प्रयुक्त किए और यह परिणाम निकला? उत्तर बहुत आश्चर्यजनक था। उनके वरीय साथी ने कहा कि ” हमारा एक शख़्स सूली पर लटकाया गया है और इस बात को सारी दुनिया जानती है। आपके पास अनगिनत शहीद हैं, लेकिन उन्हें कोई नहीं जानता। फिर तुम फूल नहीं तो क्या हो?” ये मान साहब जोगिंदर सिंह मान ही हैं, जो पंजाब 1967 में पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके थे।
इस पुस्तक का दोबारा प्रकाशन वह भी पंजाबी और उर्दू में, और अन्य भाषाओं में अनुवाद का संकल्प यह बताता है कि सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के कारनामों को सही ढंग से पेश करनेवाली पुस्तक दौलत राय की ही है। इसके “पेश लफ़्ज़” में यह बात भी लिखी गई है कि ” स्वामी दयानंद सरस्वती ने ” सत्यार्थ प्रकाश” में सिख गुरु साहिबान के विषय में किसी मुगालते के चलते कुछ अनुचित शब्द लिखे हैं, जिन पर सिख जगत ने अपनी नाराज़गी को जी भर कर प्रकट किया। और इसका कफ्फारा (प्रायश्चित) श्री गुरु गोविंद सिंह की जीवनी इस आर्यसमाजी दयानंद के अनुयायी लाला दौलत राय ने किया है। लाला दौलत राय इस पुस्तक में इस बात का रोना रोते हैं कि सिख कौम ने गुरु गोविंद सिंह की पहचान और प्रसिद्धि नहीं की और हिंदुस्तान के हिंदू समाज ने उनकी परवाह नहीं की।”
यह पुस्तक गुरु जी साहसिक कारनामों से परिपूर्ण है। वेशकीमती ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। परम वीरता की जीवनी है, जो प्रमाणिकता समेटे हुए है। गुरु जी के मुसलमान दरवेश बनने और चमकौर युद्ध के कारनामों का जीवंत वर्णन है। मात्र चालीस लोगों का हज़ारों पर भारी पड़ने का दास्तान है। वज़ीर खान को भी छक्के छूटे। औरंगज़ेब को भी अहसास हो चला कि गुरु जी जैसा वीर कोई नहीं। गुरु जी का ” ज़फ़रनामा ” उनके अदम्य साहस का प्रतीक है। उन्हें शत शत नमन।
– Dr Ram Pal Srivastava
Editor-in-Chief, Bharatiya Sanvad

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