बलरामपुर ज़िले कहाँ चली गयीं घुमत्तू गायें और अन्य गोवंश कहाँ चले गए, जो फ़सलों को लगभग साल भर से बेतहाशा नुक़सान पहुँचा रहे थे ? यह चमत्कार है या कुछ और ? क्या यह गोवंश के खिलाफ़ प्रशासनिक साज़िश नहीं है कि बग़ैर गोशालाओं के निर्माण के बलरामपुर प्रशासन ने पशुओं द्वारा फ़सलों की बर्बादी की समस्या का किसी न किसी हद तक समाधान कर दिया ! ? दरअसल हुआ यह कि कुछ महीने पहले जब भाजपा को लगा कि घुमत्तू गोवंश आगामी लोकसभा चुनाव में प्रदेश में कई सीटों पर कमल खिलाने की प्रक्रिया रोक सकते हैं, तो प्रशासनिक स्तर पर दबाव बढ़ा और इस सिलसिले में कुछ करने की मजबूरन चेष्टा की गई | कहीं – कहीं गोशालाओं के निर्माण की सतही कोशिश की गई , तो कहीं अन्य विकल्प अपनाए गए | इनमें बलरामपुर ज़िला प्रशासन को एक अजीब विकल्प सूझा ! विरोध के बावजूद जिला प्रशासन ने फ़ैसला सुना दिया कि घुमत्तू पशुओं को ज़िले के नेपाल सीमावर्ती सुहेलवा जंगल की तरफ छोड़ दिया जाए, जो बाघ अभ्यारण्य भी है | इस पर अमल किया गया , जिनका इस क्षेत्र में रहनेवाले किसानों ने घोर विरोध किया, जिसको अनसुना कर दिया गया | आज की तारीख़ विरोध करनेवाले किसान ख़ुद मान रहे हैं कि घुमत्तू पशु पहले की अपेक्षा कम हो गये हैं , लिहाज़ा फ़सलों को कम नुक़सान हो रहा है | वास्तव में पशुओं की संख्या में कमी आने का  मुख्य कारण इन पशुओं की नेपाल में की जानेवाली तस्करी है और तेंदुओं द्वारा उन्हें मार डालना है | नेपाल सीमा पर एस ऐस बी तैनात है , लेकिन उसने कभी पशु तस्करों को नहीं पकड़ा | ये अक्सर सीमावर्ती भारतीय निवासियों को अनावश्यक परेशान करने में लिप्त पाए जाते हैं | जैसे अपनी ही झाड़ी आदि की सफ़ाई पर निवासियों को पकड़ लेना | उन पर रिश्वतखोरी के भी आरोप लगे हैं , जैसे पुलिस पर लगते हैं | सीमा की निगरानी की ओर इनका अपेक्षित ध्यान नहीं है |  [ हमारे संवाददाता से ]

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