एक तरफ़ तो देश में खाद्य सुरक्षा क़ानून लागू है , जिसके तहत भुखमरी , कुपोषण और खाद्य असुरक्षा के लिए सरकार को ज़िम्मेदार माना गया है | फिर भी देश में हर साल लाखों टन अनाज सिर्फ भंडारण के उचित प्रबंध के अभाव में बर्बाद हो जाता है | खाद्य सुरक्षा क़ानून में सस्ते रेट पर चावल , गेहूं और मोटे अनाजों को उपलब्ध कराने की व्यवस्था है | इसके बावजूद भूखे लोगों की तादाद घट नहीं पा रही है ! कितनी बड़ी विडंबना है कि सरकार अनाज को तो सड़ने देती है , दूसरी ओर यह कहती है कि अनाज की कमी है , लिहाज़ा वह गरीब जनता को मुफ़्त में अनाज नहीं उपलब्ध करा सकती | भूखे लोगों तक मुफ़्त अनाज आपूर्ति के सुप्रीमकोर्ट की हिदायत पर बार – बार सरकार यही बात कहकर पल्ला झाड़ लेती है | हैरानी की बात यह भी है कि उचित भंडारण न हो पाने के कारण अनाज के सड़ने की खबरें पिछले कई साल से आती रही हैं, लेकिन इस दिशा में सरकार को कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। अब एसोचैम ने एक बार फिर सरकार के इस रवैये को कठघरे में खड़ा किया है। उसकी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल देश में साढ़े तीन करोड़ टन भंडारण क्षमता की जरूरत है, मगर इसकी कमी के चलते लगभग चालीस फीसद अनाज का रखरखाव सही तरीके से नहीं हो पाता। उसमें अवैज्ञानिक और गैर-व्यावसायिक तरीके से किए गए भंडारण और गोदामों की उपलब्धता में क्षेत्रीय विसंगति के चलते देश में कुल उपज का बीस से तीस फीसद अनाज बर्बाद हो जाता है। यह सच्चाई पहली बार सामने नहीं आई है। खाद्य सुरक्षा क़ानून के आने के बाद यह आशा की जा रही थी कि देश से भुखमरी का खात्मा हो जाएगा , किन्तु व्यवहार में ऐसा नही दीखता | आज भी करोड़ों लोगों को दिन की शरुआत के साथ ही यह सोचना पड़ता है कि आज पूरे दिन पेट भरने की व्यवस्था कैसे होगी ? सुप्रीम कोर्ट की फटकार का भी सरकार पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता | भंडारण में व्यापक खामियों के चलते लाखों टन अनाज सड़ जाने की खबरों के मद्देनजर कुछ साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी कि अगर भंडारण का प्रबंध नहीं किया जा पा रहा है तो क्यों नहीं अनाज को गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाता। इसके अनुपालन में सरकार मूक – बधिर नज़र आती है | एक आंकड़े के अनुसार , सही रखरखाव के अभाव में पंजाब में पिछले तीन वर्षों के दौरान पंजाब में 16 हज़ार 500 टन अनाज सड गया |

सरकार एक तरफ़ यह दावा करते नहीं थकती कि देश में अनाज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं , फिर भी देश में भूख से मौतों का सिलसिला बरक़रार है | कितनी अजीब बात है , जब सरकार विरोधाभासी बयान देकर यह कहती है कि अनाज की कमी है , जिसकी भरपाई के लिए जीएम तकनीक से अनाज उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाता है ,जबकि जीएम [ जेनेटिकली मोडीफाइड ] जी ई [ जेनेटिकली इंजीनियर्ड ] तकनीक से पैदा ऐसी फसलों के जोखिम से भरे होने को लेकर कई अध्ययन आ चुके हैं। जीई फसलें डीएनए को पुनर्संयोजित करनेवाली प्रौद्योगिकी ( Recombinant DNA technology ) के माध्यम से प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से तैयार किए गए पादप जीव हैं। आनुवांशिकी इंजीनियरिंग (जीई) की अनिश्चितता और अपरिवर्तनीयता ने इस प्रौद्योगिकी पर बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे भी आगे, विभिन्न अध्ययनों ने यह पाया है कि जीई फसलें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं और इससे मानव स्वास्थ्य को संकट की आशंका है। इन सबके परिणामस्वरूप, इस खतरनाक प्रौद्योगिकी को अमल में लाने की आवश्यकता पर दुनिया भर में विवाद खड़ा हो गया है। भारत एवं अन्य बहुत सारे देशों में, पर्यावरण में छोड़े जा रहे जीई या जीएम पौधों-जंतुओं (organism) के विरूद्ध प्रचार के साथ ग्रीनपीस का कृषि पटल पर पदार्पण हुआ। जीई फसलें जिन चीजों का प्रतिनिधित्व करती हैं वे सब हमारी खेती के लिए वाहियात हैं। वे हमारी जैवविविधता के विनाश और हमारे भोजन एवं खेती पर निगमों के बढ़ते नियंत्रण को कायम रखती हैं। करीब छह महीने पहले ब्रिटेन स्थित मेकेनिकल इंजीनियरिंग संस्थान की ओर से जारी एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया था कि भारत में मुख्य रूप से भंडारण और ढुलाई सहित आपूर्ति की खामियों के चलते हर साल लगभग दो करोड़ टन गेहूं बर्बाद हो जाता है। जबकि देश में ऐसे लाखों लोग हैं, जिन्हें भरपेट भोजन नहीं मिल पाता या फिर पर्याप्त पोषण के अभाव में वे गंभीर बीमारियों का शिकार होकर जान गंवा देते हैं। हैरानी की बात है कि एक ओर भंडारण के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित किया गया, लेकिन स्थानीय जरूरतों के हिसाब से सरकारी पैमाने पर ऐसे प्रबंध करना या फिर इस व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करके सामुदायिक सहयोग से इसे संचालित करना जरूरी नहीं समझा गया। इसके अलावा, जरूरत से अधिक भंडारण को लेकर खुद कृषि मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति की आलोचना के बावजूद यह सिलसिला रुका नहीं है। सरकार की लापरवाही से स्थिति दिन – प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है | ऐसे में खाद्य सुरक्षा क़ानून के क्रियान्वयन पर सवालिया निशान लग गया है | देश की नई सरकार को चाहिए कि इस गंभीर समस्या पर प्राथमिक रूप से ध्यान दे और विगत सरकारों द्वारा की जा रही अनदेखी पर रोक लगाए |

– ” ANATHAK ”

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