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सुआंव के पुल पर : पी. पयाम

घटा सावन की भीगी रात बारह बजनेवाला था अँधेरा भी भरी बरसात पाकर आज सोया था समन्दर अपनी बाँहों में समेटे सुआंव ठहरा था मैं पुल पर या किसी जलयान पर मह्वे तमाशा था — जवां सरबार मौजें खेलती थीं खिलखिलाती थीं ख़ामोशी में रह – रहके झांझें बज – Read more…

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उठेगा वतन कितना वादों से ख़ुदा जाने

आज़ादी – ए भारत के मशहूर हैं अफ़साने, उठेगा वतन कितना वादों से ख़ुदा जाने | हो कांग्रेसी कोई या पार्टी जनता की, ले डूबेंगे हम सबको कुर्सी के ये दीवाने | गड़बड़ किया है देश के हर कारोबार ने, रौंदा है ख़ूब गर्दिशे लैलोनहार ने | उकड़ू बकइयां खेल Read more…

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शाहिद रामनगरी : सच्चे पत्रकार, सच्चे दोस्त 

आज मेरे जिगरी दोस्त, मशहूर सहाफ़ी [ पत्रकार ] मरहूम शाहिद रामनगरी [ पूर्व चेयरमैन, मदरसा एजूकेशन बोर्ड, बिहार ] की पुण्यतिथि है | आज ही के दिन यानी 30 अक्तूबर 1991 को पटना में उनका निधन हुआ था | उस वक़्त मैं दिल्ली में था | चाहकर भी नहीं जा सका Read more…

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” मेले में लड़की ” – महिलाओं की बदहाली का सजीव चित्रण

”मेले में लड़की’ के विमोचन की खबर मेरे खबर मात्र नहीं थी ….. सदियों की वेदना , घुटन , उपेक्षा , तिरस्कार और दर्द को शब्दों के द्वारा जानने – समझने की जिज्ञासा और कोशिश कि एक कड़ी थी, वह भी इन्हें यथार्थ  रूप में प्रस्तुत करनेवाली शख्सियत के कहानी Read more…

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नामचीन शायर सुरेंद्र ‘विमल’

बलरामपुर के मशहूर ग़ज़लगो सुरेंद्र ‘विमल’ जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे हमारे दिलों में आज भी ज़िन्दा हैं , ख़ासकर अपनी पुरकशिश, मानीख़ेज़ शेअरों की बदौलत   ….. लीजिए ‘विमल’ जी की एक ग़ज़ल का आनंद लीजिए – [ विमल जी का रेखाचित्र अनुज भैया कुमार पीयूष जी की फेसबुक वाल से ]   Read more…

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मगर झोपड़ी खड़ी नहीं

रात में ही आ गए थे मगर सुबह हुई नहीं मकान की तलाश मगर झोपड़ी खड़ी नहीं | काश, किस क़दर मुंहतकी निगाह से देखता रहूँ क्यों निर्झर पंखुरियों  में गंदगी तो सनी नहीं | पुरलुत्फ़ सरगोशियों की टोह में चला था जुगनू कहीं सायाफ़िगन न हुआ , कहीं रोशनी Read more…

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बेगम हज़रत महल 

वाजिद अली की जान वतन की थी आबरू, हज़रत महल थी शाने अवध शाने लखनऊ | दुश्मन को याद आ गया अपनी छटी का दूध, हिम्मत को इनकी देखके हैरां थे सब उदू |   अहले नज़र ही देखेंगे हज़रत महल का काम, तारीख़ की जबीं पे नुमायाँ है जिनका नाम | Read more…

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”सोचा भी न था कि आग मेरे घर को पकड़ेगी ”

नज़ीर बनारसी साहब [ 25 नवंबर 1909-23 मार्च 1996 ] किसी परिचय के मुहताज नहीं | उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द्र के प्रखर शायर के तौर पर जाना – पहचाना जाता था | वाराणसी में लगभग 34 वर्ष पूर्व उनसे मेरी भेंट हुई थी , जब मैं पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण Read more…

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न जानूँ नेक हूँ, या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ़ है

न जानूँ नेक हूँ, या बद हूँ, पर सोहबत मुख़ालिफ है , जो गुल हूँ तो गुलख़न में, जो ख़स हूँ तो हूँ गुलशन में। – बेधड़क बनारसी मेरे गुरुवर श्री बेधड़क बनारसी जी [ श्री काशीनाथ उपाध्याय भ्रमर जी ] वह हस्ती रहे हैं,जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में Read more…

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कमाल दास का कमाल

महान संत कबीरदास जी के सुपुत्र कमाल जी की रचनाएं बड़ी मुश्किल से मिलती हैं . हाजीपुर [ बिहार ] के मेरे मित्र ऋषि कुमार जी के आग्रह पर मैंने उनकी कुछ रचनाएं प्राप्त की हैं | मैं हार्दिक रूप से आभारी हूँ परम मित्र डॉ. ज्ञान चन्द्र जी का Read more…

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स्पीड बढ़ा दी है सरकार के इंजन ने 

क्या कुछ न कहा रोकर नादारों के शेवन ने , कुछ भी न सुना लेकिन सरकार की ऐंठन ने |  बांधा है ‘ चियाँ ‘ सेहरा जब से किसी रहज़न ने , क्या रूप सँवारा है शासन तेरी दुल्हन ने |  क़ानून हुआ उनका ऐसी मिली आज़ादी , नफ़रत का दिया Read more…

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मेरे ‘बड़के दादा’ – ‘ शंकर लाला ‘- बलरामपुर की महान हस्ती 

आज दादा की याद बड़ी शिद्द्त के साथ आ रही है…. कारण पता नहीं, पता है तो सिर्फ़ उनका स्नेह – प्यार – भ्रातृत्व जो मेरे लिए बेमिसाल है। मेरे सबसे बड़े भाई जो ठहरे ……. ऐसे भाई जो हर हाल में अपने थे…………………………..अपनत्व का भाव इतना बढ़ा हुआ कि Read more…

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” कितना मुश्किल है कवि होना ?”

‘धन्य जीवन है वही जो ,दीप बनकर जल रहा , शुष्क भू की प्यास हरने , स्रोत बनकर चल रहा। जग में जीवन श्रेष्ठ वही , जो फूलों – सा मुस्काता है , अपने गुण – सौरभ से , कण – कण को महकाता है। मैं बहुआयामी प्रतिभा के धनी Read more…

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” पहली दूब ” – यथार्थपूर्ण जीवन – स्पंदन

कविता जीवन का स्पंदन है . इसकी ठीक – ठीक अनुभूति – अभिव्यक्ति कविता को जीवंत बनाती है , जो कवि ऐसा नहीं कर पाते , वे कविता की सार्थकता को नहीं सिद्ध कर सकते . यह भी एक बात है कि जो लोग काव्य को जीवन से बाक़ायदा नही Read more…

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ज़िन्दगी काहे को है , ख़ाब है दीवाने का 

मनुष्य जब सृष्टि के आयामों – उपादानों एवं उसके सौन्दर्य को देखता है तो उसके मन में कभी यह विचार आता ही है कि यह सब क्या और क्यों है ? मिर्ज़ा ग़ालिब सहज ही कह उठते हैं – ये परी चेहरा लोग कैसे हैं ? गमज़ा व इशवा व Read more…