साहित्य
मैनडीह का स्मृति-गवाक्ष
[ 1 ] आज फिर उसी तिराहे पर खड़ा हूँ जहाँ से जीवन शरू हुआ जहाँ पला – बढ़ा धूप की प्रचंडता देखी शीतल समीर के साथ छांव में लिपटी कुहासे की चादर ओढ़े सोयी रहती थी वह मेरा जीवन , मेरी लय , मेरी गति थी …. . … Read more…
[ 1 ] आज फिर उसी तिराहे पर खड़ा हूँ जहाँ से जीवन शरू हुआ जहाँ पला – बढ़ा धूप की प्रचंडता देखी शीतल समीर के साथ छांव में लिपटी कुहासे की चादर ओढ़े सोयी रहती थी वह मेरा जीवन , मेरी लय , मेरी गति थी …. . … Read more…
खल गनन सों सज्जन दुखी मति होहिं हरिपद मति रहे | अपधर्म छूटै सत्य निज भारत गहै कर दुःख बहै | बुध तजहिं मत्सर नारिनर सम होंहि जब आनन्द लहैं | तजि ग्राम कविता सुकवि जन की अमृत बानी सब कहैं | – भारतेन्दु हरिश्चंद 1868 ई. में जब आपने Read more…
इधर दानव पक्षियों के झुंड उड़ते आ रहे हैं क्षुब्ध अम्बर में , विकट वैतरणिका के अपार तट से यंत्र पक्षों के विकट हुँकार से करते अपावन गगन तल को , मनुज – शोणित – मांस के ये क्षुधित दुर्दम गिद्ध . कि महाकाल के सिंहासन स्थित हे विचारक शक्ति Read more…
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते वो सब के सब परीशाँ Read more…
बाबा नानक के जीवन में ऐसा उल्लेख है कि वे अपनी अनंत यात्राओं में विदेश यात्राएं भी कीं | मक्का में काबा तक भी गये | अरब वे एक ऐसे गांव के पास पहुंचे जो फकीरों की ही बस्ती थी। सूफियों का गांव था। और उन सूफी दरवेशों का जो Read more…