वरिष्ठ कवि , लेखक व सात्विक जीवन के सफल अनुगामी और बहुत ही मधुर एवं सहिष्णु स्वभाव के धनी आदरणीय डाक्टर ज्ञान सिंह ‘ मान ‘ जी [ पीएच . डी , डी . लिट ] की महत कृति – ‘ एक लेखनी : साठ रंग ‘ पूरी पढ़ी | यह मान जी की बड़ी अनुकम्पा है कि मेरे पास अपनी प्रत्येक नव प्रकाशित कृति ज़रूर भेजते हैं | आभारी हूँ | इस पुस्तक में आपके जीवन की कुछ महत्वपूर्ण ‘ रेखाएं ‘ हैं | संक्षिप्त जीवन – वृत्ति है, जो बहुत ही उपयोगी और पठनीय है | 
पुस्तक के अंत में ‘ बूँद – बूँद बरसे बदरा ‘ शीर्षक सूत्र – काव्य है , जो अत्यंत स्तरीय है | चंद उदाहरणों का अवलोकन कीजिए –
स्वाति को ही क्यों न भर ले , फिर से अंजलि में , इन सागरों में तो , अब मोती नहीं मिलते |
 — सत्ता का सत्य , फूल – सा खिलता रहा , सेवा का आदर्श , धूल में मिलता रहा |
…. हज़ारों साल जीने की शुभकामनाएं देते हैं वो / एक दिन के लिए भी मगर / मिलने की बात नहीं करते | 
….. अपने चेहरे को तो मैंने बार बार धोया / भीतर के मुखौटे को मगर / एक बार भी नहीं धोया | 
 — आदरणीय ज्ञान जी राजकीय कालेज , लुधियाना [ पंजाब ] के पूर्व प्राचार्य हैं | आप बहुत – सी साहित्यिक संस्थाओं / संगठनों के पूर्व और वर्तमान पदाधिकारी हैं या उनसे संबद्ध हैं | 20 से अधिक राष्ट्रीय – अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त डा . मान जी कई पुस्तकों के लेखक हैं | 
आदरणीय मान जी ने समय – समय पर मेरा जो उत्साहवर्धन किया है और सही अर्थों में मेरे संबल बने हैं , उसके लिए मैं उनका आभारी हूँ और सदा रहूँगा |
– Dr R P Srivastava
Editor-In-Chief, bharatiyasanvad.com

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