गंगा एवं गाय को ईश्वर का वरदान मानकर दोनों की पूजा की जाती है और दोनों आज भी करोडों लोगों की आस्था की प्रतीक बनी हुयी है। इन दोनों की उत्पत्ति बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय के लिये हुयी है और दोनों अस्तित्व में आने के बाद से ही निरंतर अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर हैं। इस समय गाय और गंगा दोनों के प्राण सकंट में हैं और दोनों को अपने वजूद बचाने में लाले पड़े हैं।जिस तरह गाय के दूध को साधारण दूध नहीं बल्कि अमृत माना जाता है बिल्कुल उसी तरह गंगाजल को भी साधारण पानी नहीं बल्कि अमृत माना जाता है।गंगा जी एवं गाय दोनों की उत्पत्ति के बारे में सभी जानते हैं एवं दोनों को स्वर्गलोक से जुड़ा माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गंगाजी का अवतरण इस धराधाम पर भगवान शिव के माध्यम से उनके वेग को नियन्त्रित करके जटाओं से मुख्य रूप से मनु सतरूपा के श्रापित वंशजों के उद्धार के लिए भगीरथ के पुरखों को श्राप से मुक्त करने के लिए हुआ है। गंगा का उद्भव वर्तमान समय में उत्तराखंड के देवप्रयाग में हुआ है और इससे 784 बाँध,66 बैराज और 44 लिफ्ट योजनाएं आदि इससे जुडी हुई हैं।जीवनदायिनी गंगा जी को साफ सुधरा स्वच्छ एवं उसकी धारा को अविरल व गुणवत्ता को बनाये रखना सरकार ही नहीं हर भारतीय का धर्म बनता है इसके बावजूद गंगाजी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।  हमारे यहाँ वर वधू को गंगा जमुना में जबतक पानी रहे तबतक दोनों के सुहाग अमर रहने का आशीर्वाद देने की पुरानी परम्परा है लेकिन आज गंगा सूखने की कगार पर आ गई है। गंगा नदी के प्रवाह एवं जल की गुणवत्ता बनाये रखने के प्रयास आज से नहीं बल्कि शतकों पहले से हो रही है और 1916 में पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने इसकी अविरलता एवं गुणवत्ता बनाये रखने के लिए अंग्रेजी हूकूमत से एक समझौता भी किया था। आजादी के पहले से अबतक गंगा की अविरलता एवं गंगाजल की औषधीय गुणवत्ता को बनाये रखने क लियेे भगीरथ प्रयास हो रहे हैं लेकिन आजतक समस्या जस की तस बनी हुयी है।वर्तमान समय में सरकार ने गंगा की अविरलता बनाये रखने के लिए मंत्रालय की स्थापना कर दी है इसके बावजूद गाय गंगा के नाम पर सत्ता में आई सरकार गंगा को पूरी तरह अविरलता व गुणवत्ता प्रदान नहीं कर सकी है। गंगा की शुद्धता एवं उसके प्रवाह को निर्बाध करने के लिये अबतक तमाम धरना प्रदर्शन अनशन हो चुके हैं लेकिन सरकार लगता है कि इस समस्या का निदान करना नहीं चाहती है अगर चाहती होती तो शायद एक संतशिरोमणि को अपने प्राणों की न्यौछावर नहीं करना पड़ता है। 86 वर्षीय प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञान सानंद जी महराज पिछले करीब चार माह से गंगाजी की अविरलता बनाये रखने के लिए एक विशेष एक्ट बनाने की मांग को लेकर हरिद्वार में अनशन कर रहे थे।इस दौरान उन्होंने सरकार को पत्र भी लिखा था लेकिन उस संत की न्यायोचित मांग सरकारी नक्कारखाने में जैसे तूती की आवाज बन गई और किसी ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया।उन्होंने अभी पिछले मंगलवार को जल भी त्याग दिया था और उन्हें ऋषिकेश एम्स मेंं भर्ती कराया गया था जहाँ पर परसों दोपहर उनका निधन हो गया।उनके प्राण त्याग करने से गंगा प्रेमियों को गहरा आघात लगा है और उनके अंदर सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ा है क्योंकि कहा गया है कि-” वृक्ष कबौ नहि फल भखे नदी न पीवै नीर परमारथ के कारन साधुन धरा शरीर”।गंगा की अविरलता बनाये रखना की मांग करने वाले की जान चली जाना बेहद शर्म की बात है।

  = भोलानाथ मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी

कृपया टिप्पणी करें