उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में दिमागी बुख़ार – जापानी इन्सेफ्लाइटिस/एक्यूट इन्सेफ्लाइटिस सिण्ड्रोम (ए0ई0एस0) से हर साल सैकड़ों लोगों की जानें जाती हैं | दशकों से यह बीमारी मौजूद है , लेकिन इस पर काबू पाना तो दूर , इस पर किंचित काबू भी नहीं पाया जा सका है , जो सरकारी अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार की अलग कहानी कहता है | अब योगी सरकार ने टीकाकरण का नया प्रयास आरंभ किया है | विगत 25 मई 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुशीनगर में इंसेफेलाइटिस से निपटने के लिए टीकाकरण अभियान की शुरुआत की।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पूर्वी यूपी के विकास में जापानी इंसेफेलाइटिस बाधक है। इसके उन्मूलन के लिए केंद्र व प्रदेश सरकारों ने संयुक्त रूप से विशेष टीकाकरण अभियान की शुरुआत की है। जिन्होंने इसका टीका नही लगवाया है, वे अब इसे आसानी से लगवा सकेंगे। योगी ने टीकाकरण के फायदे को हर वर्ग से लेने की अपील की।मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें मिलकर इंसेफेलाइटिस के खिलाफ जागरूकता पैदा करनी होगी। इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बताया कि इंसेफेलाइटिस को लेकर यह विशेष टीकाकरण अभियान प्रदेश के 38 जिलों में यह अभियान चलाया जायेगा। इसके तहत 88 लाख 57 हजार बच्चों का टीकाकरण होगा।

केंद्र ने प्रदेश सरकार के अनुरोध पर इस अभियान के लिए एक करोड़ वैक्सीन उपलब्ध कराई है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस एक बड़ी समस्या है। ऐसे में राज्य सरकार इस भयंकर बीमारी से निपटने के लिए टीकाकरण अभियान शुरू कर रही है। वैसे तो यह बीमारी कई प्रदेशों में जड़ जमाये हुए है , लेकिन यह सच है कि पूर्वांचल के कुशीनगर , गोरखपुर , बलरामपुर , बस्ती , खलीलाबाद , गोंडा , बहराइच , श्रावस्ती आदि जिलों में यह बीमारी जनता पर क़हर बनकर टूटी है | कुछ समय पहले सपा सरकार के दौरान अख़बारों में यह रिपोर्ट छपी कि गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में 24 घंटे के बीच मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित 12 और बच्चों की मौत हो गई। उनमें गोरखपुर व कुशीनगर जिले के तीन-तीन तथा बस्ती के दो और देवरिया, महराजगंज, संतकबीरनगर व बिहार का एक-एक बच्चा शामिल है। हर साल इस बीमारी से सैकड़ों लोग मरते हैं , जिनमें बच्चे – बच्चियों की संख्या अधिक है | इस बीमारी के शिकार रोगियों का अस्पताल में भर्ती होने का सिलसिला साल के बारहो महीना जारी रहता है | कभी हालत यह हो जाती है कि

अस्पताल में सभी को भर्ती नहीं किया जा सकता , क्योंकि अस्पताल की उतनी क्षमता नहीं है | अतः उन्हें दवा लिखकर घर पर ही रहकर उसका सेवन करना पड़ता है , जिसके कारण भी अधिकांश मौतें होती हैं | अतः इस बीमारी पर काबू पाने की दिशा में सबसे बड़ा कदम अस्पताल में रोगियों को भर्ती करने का व्यापक प्रबंध करना होगा | पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ ही बिहार और पड़ोसी देश नेपाल से भी बड़ी संख्या में रोगी इलाज के लिए आते हैं |

उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल समेत देश के 17 राज्यों में इंसेफ्लाइटिस से लोग परेशान हैं और बच्चों की मौत के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के 34 जिले और खास तौर गोरखपुर व पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिले काफी प्रभावित हैं। सवाल यह है कि जिस देश में बच्चे असमय काल के गाल में समा रहे हों , उस देश का भविष्य कैसा होगा ? इस सवाल से सत्ताधारियों को क्या वास्ता ? दिमागी बुखार पूर्वी उत्तर प्रदेश व आसपास के इलाकों में करीब तीन दशक से अधिक समय से कहर बरपा रहा है। इसकी विकरालता को देखते हुए कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐलान किया था कि बुखार से मृत्यु होने पर मृतक आश्रित को 50 हजार रुपए दिए जाएंगे। वहीं इससे होने वाली विकलांगता पर पीड़ित बच्चे को एक लाख रुपए की सहायता दी जाएगी, जिसमें 50 हजार रुपए नकद दिए जाएंगे, जबकि 50 हजार रुपए उसके खाते में जमा कराए जाएंगे, जो उसकी शिक्षा व चिकित्सा पर खर्च किए जाएंगे। मगर इस पर कभी प्रभावी अमल नहीं किया गया | इसमें भी भ्रष्टाचार की बड़ी शिकायतें मिलीं |

मौत पर मुआवजा देने के बजाय जीवन बचाने के उपाय किए जाने पर नेताओं की शायद कोई खास दिलचस्पी नहीं है ! यहाँ के दिमागी बुखार से पीड़ित भर्ती मरीज के परिजनों को मजबूर किया जाता है कि वे अपने मरीज के लिए बाहर से दवाएं खरीद कर लायें | उक्त मेडिकल कालेज के डाक्टरों का मरीज़ों के प्रति व्यवहार भी बड़ा शर्मनाक है | मेडिकल कालेज में आये दिन मरीज और डाक्टरों में मारपीट की घटनाएं आम है | ऐसी भी शिकायतें आ चुकी हैं कि डाक्टर यहाँ हिंसक होकर कभी भी मरीजों और उनके परिजनों पर हमला करते हैं | बात ज्यादा बिगड़ जाती है तो यहाँ के जूनियर डाक्टर बिना किसी से पूछे मरीजों और परिजनों को अस्पताल से बाहर का रास्ता दिखा देते है |

नेहरू चिकित्सालय के नाम से मशहूर मेडिकल कालेज भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं | कालेज के संचालक पर तो दिमागी बुखार की दवाई “ईमीनोग्लोबलिन” की खरीद में गडबडी का आरोप लग चुका है | सरकार इन डाक्टरों और गोरखपुर मेडिकल कालेज प्रशासन से हार चुकी थी | अब योगी सरकार ने इन्हें ‘ टाइट ‘ किया है | देखना है , इसके कितने सकारात्मक परिणाम निकलते हैं ? लेकिन अतीत में होता यही रहा है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की लाख शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती थी | अतः पूर्ववर्ती सरकारों पर यह आरोप लगते रहे कि सरकार का ध्यान समस्या से ज्यादा काली कमाई करने वालों को संरक्षण देने पर है |

अगर बीते सालों में यहाँ दिमागी बुखार से पीड़ित बच्चो के मृत्यु दर पर नज़र डाली जाए , तो 2005 से 2012 के बीच में अभी तक करीब 4225 बच्चे काल के गाल में समा चुके हैं | गौर करने वाली बात यह है कि ये सरकारी आंकड़े हैं | गैर सरकारी आंकड़ो पर नज़र डाले तो रूह कांपने वाली स्थिति है |

इसे दुर्भाग्य ही तो कहेंगे कि पिछले चार दशक में केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश में 40 हजार से अधिक बच्चे इस बीमारी से मर गए। यह आंकड़ा सरकारी है और केवल एक अस्पताल का है। असली संख्या इससे कहीं अधिक और भयावह है। इस बीमारी से विकलांग हुए बच्चों की संख्या भी बहुत अधिक है। यह संख्या एक आंकड़े की तरह हमारे सामने से गुजर जाती है , लेकिन इस पर काबू पाने की कोशिश नगण्य होती है | इस बीमारी की त्रासदी यह है कि मौत से बचने वाले बच्चे शारीरिक या मानसिक रूप से अपंग हो जाते हैं। कितनी बड़ी विडंबना है कि सरकारें बीमारी का पता लगाने में ही व्यस्त हैं। कोई इसे जापानी ज्वर का नाम देता है तो कोई मस्तिष्क ज्वर तो कोई इंसेफ्लाइटिस। लेकिन इसका न कोई इलाज तलाशा गया और न इसकी वजहें तलाशी गईं। केवल इलाज के नाम पर आने वाला धन लूटा जाता रहा है ।

मेडिकल कालेज में इन्सेफेलाईटिस से लड़ने के लिए सभी आधुनिक साधन मौजूद है, पर कोई भी सकारात्मक परिणाम नज़र नही आता जबकि बच्चो की मृत्यु दर की तुलना अगर जिला अस्पताल से की जाए तो वहा की स्थिति मेडिकल कालेज से बेहतर है | स्वास्थ्य विभाग की नाकामी दिमागी बुखार मसले पर बीते कई सालों से देखी जा रही है | इसकी मुख्य वजह अगर यहाँ के डाक्टर, और इस योजना को संचालित करने वालों की नाकामी है तो एक बड़ी वजह सरकार और राजनीति भी है | धीरे-धीरे विकराल रूप ले रही यह समस्या राजनीति का भी शिकार है | भले ही सरकारे इस समस्या से निपटने के लिए करोडो रुपयों का धन हर साल आवंटित करती है, पर उस पर राजनीति भी खूब होती है | – Dr RP Srivastava

कृपया टिप्पणी करें

Categories: खबरनामा